“बाईबल में अनेक प्रभुओं का प्रमाण”
3:22.
फिर यहोवा प्रभु ने
(उत्पति अध्याय 3:22 तथा 17:1 तथा 18:1 से 5 तथा 16 से 23 तथा 26.29.32.33 में)
कहा मनुष्य भले-बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। इसलिए ऐसा न हो कि यह जीवन के वृक्ष वाला फल भी तोड़ कर खा ले और सदा जीवित रहे।
उत्पति ग्रन्थ के अध्याय 17 श्लोक 1 (17:1) में कहा है कि
जब अब्राम निन्यानवे (99) वर्ष का हो गया तब यहोवा ने उसको दर्शन दे कर कहा ‘‘मैं सर्वशक्तिमान हुँ। मेरी उपस्थिति में चल और सिद्ध होता जा’’
फिर उत्पति ग्रन्थ के अध्याय 18 श्लोक 1 से 10 तथा अध्याय 19 श्लोक 1 से 25 में तीन प्रभुओं का प्रमाण है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि आदम जी का प्रभु कह रहा है कि आदम को भले बुरे का ज्ञान होने से हम में से एक के समान हो गया है। इससे सिद्ध हुआ कि ऐसे प्रभु और भी हैं जब कि इसाई धर्म के श्रद्धालु कहते है परमात्मा एक है तथा यह भी प्रमाणित हुआ कि परमात्मा साकार है मनुष्य जैसा है।
उत्पति ग्रन्थ अध्याय 3 के श्लोक 23. व 24. इसलिए प्रभु ने आदम व उसकी पत्नी को अदन के उद्यान से निकाल दिया।
काल प्रभु ने उनको उस वाटिका से निकाल दिया और कहा कि अब तुम्हें यहाँ नहीं रहने दूँगा और तुझे अपना पेट भरने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ेगा और औरत को श्राप दिया कि तू हमेशा आदमी के पराधीन रहेगी।
{विशेष:– श्री मनु जी के पुत्र इक्ष्वाकु तथा इसी वंश में राजा नाभीराज हुए। राजा नाभीराज के पुत्र श्री ऋषभदेव जी हुए जो पवित्र जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर माने जाते हैं। यही श्री ऋषभदेव जी की पवित्रत्मा बाबा आदम हुए। जैन धर्म के सद्ग्रन्थ ‘‘आओ जैन धर्म को जाने‘‘ पृष्ठ 154 में लिखा है।} आदम व हव्वा के संयोग से दो पुत्र उत्पन्न हुए। एक का नाम काईन तथा दूसरे का नाम हाबिल रखा। काईन खेती करता था। हाबिल भेड़-बकरियाँ चराया करता था। काईन कुछ धुर्त था परन्तु हाबिल ईश्वर पर विश्वास करने वाला था। काईन ने अपनी फसल का कुछ अंश प्रभु को भंेट किया। प्रभु ने अस्वीकार कर दिया। फिर हाबिल ने अपने भेड़ के पहले मेमने को प्रभु को भेंट किया, प्रभु ने स्वीकार किया। {यदि बाबा आदम में प्रभु बोल रहा होता तो कहता कि बेटा हाबिल मैं तेरे से प्रसन्न हूँ। आप ने जो मैमना भेंट किया यह आप की प्रभु के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। यह आप ही ले जाईये और इसे बेच कर धर्म (भण्डारा) कीजिए और अपनी भेड़ों की ऊन उतार कर रोजी-रोटी चलाईये तथा प्रभु में विश्वास रखिये। यह बाबा आदम के शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके कोई प्रेत व पितर बोल रहा था तथा इसी प्रकार पवित्र बाईबल में माँस खाने का प्रावधान पित्तरों ने किसी नबी में बोल कर करवाया है।}
इस से काईन को द्वेष हुआ तथा अपने छोटे भाई को मार दिया। कुछ समय के बाद आदम व हव्वा से एक पुत्र हुआ उसका नाम सेत रखा। सेत को फिर पुत्र हुआ उसका नाम एनोस रखा। उस समय से लोग प्रभु का नाम लेने लगे।
विचार करें –
जहाँ से पवित्र ईसाई व मुसलमान धर्म प्रथम पुरूष के वंश की शुरूआत हुई वहीं से मार-काट लोभ और लालच द्वेष परिपूर्ण है। आगे चलकर इसी परंपरा में ईसा मसीह जी का जन्म हुआ। इनकी पूज्य माता जी का नाम मरियम तथा पूज्य पिता जी का नाम यूसुफ था। परन्तु मरियम को गर्भ एक देवता से रहा था। इस पर यूसुफ ने आपत्ति की तथा मरियम को त्यागना चाहा तो स्वपन में (फरिश्ते) देवदूत ने ऐसा न करने को कहा तथा यूसुफ ने डर के मारे मरियम का त्याग न करके उसके साथ पति-पत्नी रूप में रहे। देवता से गर्भवती हुई मरियम ने ईसा को जन्म दिया। हजरत ईसा से पवित्र ईसाई धर्म की स्थापना हुई। ईसा मसीह के नियमों पर चलने वाले भक्त आत्मा ईसाई कहलाए तथा पवित्र ईसाई धर्म का उत्थान हुआ।
प्रमाण के लिए कुरान शरीफ में
सूरः मर्यम-19 में
तथा पवित्र बाईबल में
मती रचित सुसमाचार मती=1:25 पृष्ठ नं. 1-2 पर।
हजरत ईसा जी को भी पूर्ण परमात्मा सत्यलोक से आकर मिले तथा एक परमेश्वर का मार्ग समझाया। इसके बाद ईसा जी एक ईश्वर की भक्ति समझाने लगे। लोगों ने बहुत विरोध किया। फिर भी वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। परन्तु बीच-बीच में ब्रह्म(काल/ज्योति निरंजन) के फरिश्ते हजरत ईसा जी को विचलित करते रहे तथा वास्तविक ज्ञान को दूर रखा।
हजरत यीशु का जन्म तथा मृत्यु व जो जो भी चमत्कार किए वे पहले ब्रह्म(ज्योति निरंजन) के द्वारा निर्धारित थे। यह प्रमाण पवित्र बाईबल में है कि एक व्यक्ति जन्म से अंधा था। वह हजरत यीशु मसीह के पास आया। हजरत जी के आशीर्वाद से उस व्यक्ति की आँखें ठीक हो गई। शिष्यों ने पूछा हे मसीह जी इस व्यक्ति ने या इसके माता-पिता ने कौन-सा ऐसा पाप किया था जिस कारण से यह अंधा हुआ तथा माता-पिता को अंधा पुत्र प्राप्त हुआ। यीशु जी ने कहा कि इसका कोई पाप नहीं है जिसके कारण यह अंधा हुआ है तथा न ही इसके माता-पिता का कोई पाप है जिस कारण उन्हें अंधा पुत्र प्राप्त हुआ। यह तो इसलिए हुआ है कि प्रभु की महिमा प्रकट करनी है। भावार्थ यह है कि यदि पाप होता तो हजरत यीशु आँखे ठीक नहीं कर सकते थे।
यह सब काल ज्योति निरंजन (ब्रह्म) का सुनियोजित जाल है। जिस कारण उसके द्वारा भेजे अवतारों की महिमा बन जाए तथा आस पास के सभी प्राणी उस पर आसक्त होकर उसके द्वारा बताई ब्रह्म साधना पर अटल हो जाऐं। जब परमेश्वर का संदेशवाहक आए तो कोई भी विश्वास न करे। जैसे हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीडि़त व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पित्तर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है।
उसके अवतार की महिमा बन जाती है। या कोई साधक पहले का भक्ति युक्त होता है। उससे भी ऐसे चमत्कार उसी की कमाई से करवा देता है तथा उस साधक की महिमा करवा कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।
इसी तरह का उदाहरण पवित्र बाईबल ‘शमूएल‘ नामक अध्याय 16:14-23 में है कि
शाऊल नामक व्यक्ति को एक प्रेत दुःखी करता था। उसके लिए बालक दाऊद को बुलाया जिससे उसको कुछ राहत मिलती थी। क्योंकि हजरत दाऊद भी ज्योति निरंजन का भेजा हुआ पूर्व शक्ति युक्त साधक पूर्व की भक्ति कमाई वाला था। जिसको ‘जबूर‘ नामक किताब ज्योति निरंजन/ब्रह्म ने बड़ा होने पर उतारी।
हजरत ईसा मसीह की मृत्यु 30 वर्ष की आयु में हुई जो पूर्व ही निर्धारित थी। स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरी मृत्यु निकट है तथा तुम (मेरे बारह शिष्यों) में से ही एक मुझे विरोधियों को पकड़वाएगा। उसी रात्री में सर्व शिष्यों सहित ईसा जी एक पर्वत पर चले गए। वहाँ उनका दिल घबराने लगा। अपने शिष्यों से कहा कि आप जागते रहना। मेरा दिल घबरा रहा है। मेरा जी निकला जा रहा है। मुझे सहयोग देना। ऐसा कह कर कुछ दूरी पर जाकर मुंह के बल पृथ्वी पर गिरकर प्रार्थना की (38,39), वापिस चेलों के पास लौटे तो वे सो रहे थे। यीशु ने कहा क्या तुम मेरे साथ एक पल भी नहीं जाग सकते। जागते रहो, प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में फेल न हो जाओ। मेरी आत्मा तो मरने को तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है। इसी प्रकार यीशु मसीह ने तीन बार कुछ दूर जाकर प्रार्थना की तथा फिर वापिस आए तो सभी शिष्यांे को तीनों बार सोते पाया। ईसा मसीह के प्राण जाने को थे, परन्तु चेले राम मस्ती में सोए पड़े थे। गुरु जी की आपत्ति का कोई गम नहीं।
तीसरी बार भी सोए पाया तब कहा मेरा समय आ गया है, तुम अब भी सोए पड़े हो। इतने में तलवार तथा लाठी लेकर बहुत बड़ी भीड़ आई तथा उनके साथ एक ईसा मसीह का खास यहूंदा इकसरौती नामक शिष्य था, जिसने तीस रूपये के लालच में अपने गुरु जी को विरोधियों के हवाले कर दिया।(मत्ती 26:24-55 पृष्ठ 42-44)
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुण्यात्मा ईसा मसीह जी को केवल अपना पूर्व का निर्धारित जीवन काल प्राप्त हुआ जो उनके विषय में पहले ही पूर्व धर्म शास्त्रों में लिखा था। “मत्ती रचित समाचार” पष्ठ 1 पर लिखा है कि याकुब का पुत्र युसूफ था। युसूफ ही मरियम का पति था। मरियम को एक फरिश्ते से गर्भ रहा था। तब हजरत ईसा जी का जन्म हुआ समाज की दृष्टि में ईसा जी के पिता युसूफ थे। (मत्ती 1:1-18)
तीस (30) वर्ष की आयु में ईसा मसीह जी को शुक्रवार के दिन सलीब मौत (दीवार) के साथ एक आकार के लकड़ के ऊपर ईसा को खड़ा करके हाथों व पैरों में मेख (मोटी कील) गाड़ दी। जिस कारण अति पीड़ा से ईसा जी की मृत्यु हुई। तीसरे दिन रविवार को ईसा जी फिर से दिखाई देने लगे। 40 दिन (चालीस) कई जगह अपने शिष्यों को दिखाई दिए। जिस कारण भक्तों में परमात्मा के प्रति आस्था दृढ़ हुई। वास्तव में पूर्ण परमात्मा ने ही ईसा जी के रूप में प्रकट होकर प्रभु भक्ति को जीवित रखा था।
काल तो चाहता है यह संसार नास्तिक हो जाए। परन्तु पूर्ण परमात्मा ने यह भक्ति वर्तमान समय तक जीवित रखनी थी। अब यह पूर्ण रूप से फैलेगी। उस समय के शासक(गवर्नर) पिलातुस को पता था कि ईसा जी निर्दोष हैं परन्तु फरीसियों अर्थात् मूसा के अनुयाईयों के दबाव में आकर सजा सुना दी थी।
LORD KABIR