आसाम में स्थित कामख्या मंदिर-
योनि पुजन |
एक समय पार्वती जी नेअपने पिता दक्ष के हवन कुंड में कूद कर आत्महत्या कर ली। शिवजी मोहवश हजारों सालो तक पार्वती के जले हुए शव को कंधे पर लादे घूमते रहे।
विष्णु जी ने उनका मोह भंग करने के लिए अपने एक बाण से पार्वती जी का शव बिखेर दिया।
जहां शव की आंख गिरी वहां नैना देवी, जहां जिव्हा गिरी वहां ज्वाला मंदिर, जहां धड गिरा वहां वैष्णो देवी व जहां योनि गिरी वहां कामख्या मंदिर बना दिए गए।
हम बात करेगें कामख्या मंदिर की। इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। यहां योनि की पूजा होती है। साल में एक माह में तीन दिन तक वह देवी रजस्वला होती है। देवी के शरीर से निकले द्रव्य से सिन्दूर बना कर बेचा जाता है। तंत्र विद्या में इस सिन्दूर का प्रयोग किया जाता है।
कृपा प्रेमीजन विचार करें
हमें पूजा एक परमपिता परमात्मा की करनी चाहिए और हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है। कहते हुए भी शर्म आती है कि दुनिया क्या पूज रही है।
जो देवी पारवती स्वयं ही जन्मती मरती है क्या मोक्ष प्राप्ति के लिए उसकी पूजा की जानी चाहिए। जानकारी के लिए बता दें कि शंकराचार्य देवी पारवती की पूजा पाठ करते हैं।
क्या एक देवी व साधारण स्त्री के शरीर में कोई भिन्नता नही…….? क्या देवी देवताओं का शरीर भी हम इंसानो की तरह हाड मांस से बना हुआ है।
तीन दिन मंदिर बंद रहने के बाद पुजारी पूरे मंदिर व माता की योनि को शुद्ध करते हैं…………….क्या देवी देवता भी अशुद्ध होते हैं…..अगर ये भी अशुद्ध है तो इनमें और इंसानो में अंतर क्या है?
सबसे गंदा कर्म देवी के शरीर से निकले तरल पदार्थ को सिंदूर बनाकर बेचा जाता है। सोचकर भी घिन आती है। जिसके कारण स्त्री को(कुछ दिन) अशुद्ध माना जाता है वह चीज प्रयोग करना…?
मेरा देश कब इन अंधविश्वासों से बाहर आएगा?
पूजनीय केवल वह परमात्मा है जिसने हम सबको (देवी देवता, मनुष्य) बनाया।
वास्तविक भक्ति विधि के लिए पढिए बुक ज्ञान गंगा।
हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है बल्कि सत्य को सामने लाना है।
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सत साहेब जी।