मक्का में शैतान की मूर्ति
कुछ समय पहले एक मुस्लिम युवा ने सवाल किया था ,कि
आप लोग धातु , मिटटी और पत्थरों की मूर्तियों की पूजा क्यों करते हो ?
क्या आपके भगवान इनके भीतर घुसे हुए हैं ?
भला यह बेजान मूर्तियां भी कुछ महसूस कर सकती हैं ? जो आपकी दुआएं सुन लेंगी ?
हम इस लेख के माध्यम से उन हजरत से पूछना चाहते हैं कि मुसलमान हज के दौरान शैतान को मारने के लिए “जमरात ” नामक खम्भे पर पत्थर क्यों मारते हैं ? क्या शैतान उनमे घुसा हुआ है ? और अगर शैतान उनमे हैं ,तो इतने बरसों तक पत्थर मारने पर भी शैतान अब तक क्यों नहीं मरा ? जबकि पत्थर मरने वाले हजारों हाजी मर गए , क्या अल्लाह की तरह शैतान भी अमर है ?
1- शैतान का परिचय
इस्लाम से काफी समय पहले से ही अरब के लोग शैतान को अल्लाह का प्रतिद्वंदी शक्तिशाली मानते थे , इस्लामी मान्यता के अनुसार शैतान भी अल्लाह की तरह अमर है , लेकिन शैतान का जन्म लगभग साठ हजार पहले हुआ था , शैतान को कुरान में “इबलीस – ابليس ” भी कहा गया है , परन्तु उसका असली नाम “अजाजील – عزازيل ” है , जो तौरेत यानि बाइबिल के शब्द “अजाज एल – עֲזָאזֵל “से लिया गया है . हिन्दी में इसका अर्थ ईश्वर की फटकार है (Damnation of God ).
वास्तव में इब्लीस एक जिन्न है ,जिसे अल्लाह ने “मुअल्लिमुल मलकूत – معلم الملكوت ” यानी फ़रिश्तों का सरदार बना दिया था .इब्लीस के पिता का नाम खबीस है ,जिसका चेहरा सिंह की तरह है , और वैसा ही स्वभाव है .इब्लीस की माँ का नाम ” निलबीस ” है , जिसका चेहरा शेरनी की तरह है , यह उग्र स्वभाव की है . इब्लीस की पत्नी का नाम “तरतबा ” है,इब्लीस के पांच लडके हैं , उनके नाम और काम इस प्रकार हैं ,
1.ताबर-
लोगों के मन में विकार, भ्रम, जटिलता और मन की व्याकुलता उत्पन्न करता है
2.आवर-
दुष्कर्मों की प्रेरणा देता है
3.मसौत-
झूठ बोलने और धोखा देने की प्रेरणा देता है
4.वासिम –
परिवार और रिश्तेदारों में झगडे और समाज में दंगे करवाता है
5. जकनबार –
बाजारों में विवाद और अफवाहें फैला कर लोगों में लड़ाई करवाता है
2-शैतान का सिंहासन समुद्र में है
जो मुर्ख लोग शैतान को पत्थर मारने के लिए मक्का जाते हैं , उन्हें पता होना चाहिए कि शैतान समुद्र में रहता है , जैसा कि इस हदीस में कहा गया है ,
“जबीर बिन अब्दुल्लाह ने कहा कि रसूल ने बताया है कि “शैतान का सिंहासन समुद्र में है ( The throne of Iblis is upon the ocean ). अरबी में “इन्न अर्शुल इबलीस अला बहर- إِنَّ عَرْشَ إِبْلِيسَ عَلَى الْبَحْرِ “
सही मुस्लिम – किताब 39 हदीस 6754
3-शैतान को पत्थर मारने का रिवाज
नौवीं शताब्दी में पैदा हुए इतिहासकार “अल अजरकी – الأزرقي ” ने अपनी किताब “अखबार मक्का – اخبار مكة ” में मक्का का इतिहास लिखा है . इसमे मक्का में इस्लाम से पहले के रिवाज , दन्तकथाएं और मान्यताओं का विस्तृत विवरण दिया गया है ।
इसके साथ मुहम्मद साहब की मृत्यु तक यानी सन 603 ई ० तक मक्का में होने वाली घटनाओं का विवरण भी दिया है . अजरकी ने मक्का में हाजियों द्वारा ईंट पत्थर से निर्मित स्तम्भ(Pillar) को पत्थर मारने की परम्परा का भी उल्लेख किया है , लोग उसे शैतान मानते हैं , यह रिवाज हजारों साल पुराना है , पीढ़ी दर पीढ़ी लोग इसी रिवाज को मानते आये हैं , यद्यपि कुरान में शैतान को पत्थर मारने का आदेश कहीं नहीं दिया है , कारण पूछने पर लोग कहते हैं ,
“और जब यह कोई अनैतिक काम करते हैं ,तो कहते हैं की हमने यह अपने पूर्वजों को ऐसा करते हुए पाया है , हमें तो अल्लाह ने यही हुक्म दिया है “
सूरा -अल आराफ 7:28
शैतान को पत्थर मारने की परंपरा के पीछे मक्का के लोगों में एक कहानी प्रचलित है ,जिसे अजरकी ने लिखा है ,
इसके अनुसार
” जब इब्राहिम मीना नामकी जगह छोड़ कर अकबा गए तो उनको गंदे पत्थरों के ढेर के पीछे छुपा हुआ शैतान दिखा , तभी जिब्राइल ने उन से कहा इस शैतान को पत्थर मार कर भगा दो .इस से शैतान भाग गया लेकिन फिर वहीँ छुप गया , इब्राहिम ने फिर पत्थर मारे , ऐसा दो बार हुआ . तब जिब्राईल ने इब्राहिम से कहा शैतान को सात पत्थर मारो , तभी यह भागेगा , इब्राहिम ने ऐसा ही किया , और शैतान दूर कहीं चला गया .”
तभी से यह रिवाज शुरू हो गया
4-शैतान का कद बढ़ गया
यदि हम कहें कि जैसे जैसे मुसलमानों में शैतानी प्रवृत्ति बढ़ने लगी वैसे ही शैतान के स्तम्भ का कद भी बढ़ गया है ,तो इस बात में कोई झूठ नहीं है , क्योंकि सऊदी सरकार ने सन 2004 में शैतान के छोटे स्तम्भ को तोड़ कर नया और बड़ा स्तम्भ बनवा दिया है .यह 26 मीटर यानी 85 फुट लंबा है , इसके आगे एक पुल भी बनवा दिया गया है , ताकि लोग इस पर चढ़ कर शैतान के स्तम्भ पर पत्थर मार सकें , इस स्तम्भ को अरबी में “अल जमरात الجمرات – “ कहा जाता है
1.पुराने स्तम्भ की फोटो
2.नये स्तम्भ की फोटो
5-शैतान को पत्थर मारने की विधि –
शैतान को पत्थर मारने को अरबी में “रमी अल जमरात – رمي الجمرات “ कहा जाता है , इसके लिए नियम इस प्रकार हैं
1.जिल हज की 10 तारीख को हाजी मुजदलीफा से निकलें और मीना के रास्ते से पत्थर जमा करें ।
2 .पत्थर न तो बहुत बड़े हों और न छोटे हों ।
3.सुन्नत के अनुसार सात (7 ) पत्थर जमा कर के रख लें ।
4.मीना आने पर सूर्योदय से पहले पत्थर नहीं मारें ।
5.हाजी जमरात पर सात पत्थर मारें , लोग शैतान पर धिक्कार करने के लिये अपने जूते , सैंडिल और अन्य गंदी चीजें भी फेक कर मार देते हैं ।
6-शैतान को पत्थर कब मारें ?
इसके बारे में यह हदीस बताती है ,
वाबरा ने इब्न उमर से पूछ कि हम शैतान पर पत्थर कब मार सकते हैं ? उमर ने कहा जब तुम्हारे दल का मुखिया (इमाम ) आदेश करे यानी पत्थर मारे तभी शैतान पर पत्थर मारना .
Narrated Wabrah,I asked Ibn ‘Umar: When should I throw pebbles at the jamrah? He replied: When your imam (leader at Hajj) throws pebbles
“، عَنْ وَبَرَةَ، قَالَ سَأَلْتُ ابْنَ عُمَرَ مَتَى أَرْمِي الْجِمَارَ قَالَ إِذَا رَمَى إِمَامُكَ فَارْمِ . فَأَعَدْتُ عَلَيْهِ الْمَسْأَلَةَ فَقَالَ كُنَّا نَتَحَيَّنُ زَوَالَ الشَّمْسِ فَإِذَا زَالَتِ الشَّمْسُ رَمَيْنَا . “
Sunan Abi Dawud – Book 10, Hadith 1967
7-पत्थर मारने वालों की मौत
शैतान के स्तम्भ पर पत्थर मारने के लिए हाजियों में धक्कामुक्की और भगदड़ हो जाती है , और शैतान पर पत्थर मारने वाले खुद मर जाते है , जैसा इसी साल में हुआ है , मुहम्मद साहब के सामने भी ऐसा हुआ था , जिसका विवरण इस हदीस में है ,
अब्दुल्लाह इब्न बुरैदा ने अपने पिता से सुना कि एक औरत शैतान को पत्थर मारते समय दूसरी औरत से गुथ गयी , जिस से उसके पेट का गर्भ गिर गया. तब रसूल ने उस बच्चे के लिए दिय्या ( ) मुआवजे के रूप में पचास भेड़ें उस औरत को दीं ,और लोगों को पत्थर मारना बंद करने को कहा
a woman threw some pebbles and stuck another woman, and she miscarried. The Messenger of Allah stipulated (a Diyah of ) fifty sheep for her child. And on that day, he forbade throwing pebbles.
، عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ بُرَيْدَةَ، عَنْ أَبِيهِ، أَنَّ امْرَأَةً، خَذَفَتِ امْرَأَةً فَأَسْقَطَتْ فَجَعَلَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم فِي وَلَدِهَا خَمْسِينَ شَاةً وَنَهَى يَوْمَئِذٍ عَنِ الْخَذْفِ . أَرْسَلَهُ أَبُو نُعَيْمٍ . “
“
Sunan an-Nasa’i – Vol. 5, Book 45, Hadith 4817
8-कोसने से शैतान शक्तिशाली हो जाता है
इस्लाम से पहले से भी अरब लोगों में रिवाज था कि जब कोई काम बिगड़ जाता था , या किसी तरह की अड़चन पैदा हो जाती थी , तो वह शैतान को कोसने लगते थे , और कह देते थे कि शैतान मर जाये , या शैतान पर लानत हो . अरबों की यह परंपरा मुहम्मद साहब के समय से भी थी , और आज भी जारी है , लोग ज़रा सी बात पर भी शैतान को जिम्मेदार बता कर उसकी मौत की बद दुआ देने लगते थे , जैसा इस हदीस में कहा गया है ,
अबु तमीमा अल हुज़ैमा ने कहा की
”एक बार मैं रसूल के पीछे उनके गधे पर बैठ कर जा रहा था , तभी वह गधा रास्ते में अड़ गया , यह देख कर मैं बोल पड़ा कि “शैतान का नाश हो ( Let Satan perish) ,अरबी में “युहलिक अश्शैतान – يهلك الشيطان”यह सुन कर रसूल ने कहा ऐसा नहीं कहो इस से शैतान और बड़ा हो जायेगा , बल्कि कहो बिस्मिल्लाह इस से शैतान एक मच्छर से भी छोटा हो जायेगा”
मुसनद इमाम अहमद ( مسند أحمد ) Vol. 5 p. 59
यही बात इस हदीस में इस प्रकार कही गयी है ,
तुम यह नहीं कहो कि शैतान का नाश हो,और न यह कहो लि इन्नल इबलीस लईन – لأنَّ إبْليسَ اللّعِينَ ” यानी शैतान के लिए लानत हो , ऐसा कहने से शैतान की शक्ति बढ़ जाती है . इसलिए तुम कहो अल्लाह के नाम से ‘( In the name of Allah ) . इस से वह अपमानित महसूस करेगा
सुन्नन अबी दाऊद – किताब अल अदब 42 हदीस 4982
इन हदीसों से सिद्ध होता है कि मुसलमान शैतान लानत भेज भेज कर उसकी शक्तियों में वृद्धि कर रहे है ,यही कारण है कि इस्लामी देशों में शैतान का राज है , कहीं शान्ति नहीं है .इन सभी प्रमाणों से सिद्ध होता है कि इस्लाम की मान्यताएं , रिवाज और परंपरा तर्कहीन और अंधविश्वास पर आधारित हैं . जब मुसलमान एक स्तम्भ में शैतान का निवास मानते हैं . जो एक प्रकार की मूर्ति पूजा ही है , तो उनको हिन्दुओं की मूर्ति पूजा पर कटाक्ष करने का कोई अधिकार नहीं . मुस्लमान ऐसा इसलिए करते हैं , क्योंकि उनके सभी नबी और रसूल शैतान के प्रभाव से ग्रस्त थे ,
जैसा कि खुद कुरान में लिखा है ,
“हे मुहम्मद तुम से पहले जो भी नबी और रसूल हमने भेजे शैतान ने उनकी कामना में असत्य मिला दिया था”
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