स संकट मोचन कबीर साहेब हैं ।
कर्म कष्ट (संकट) होने पर कोई अन्य ईष्ट देवता की या माता मसानी आदि की पूजा कभी नहीं करनी है। न किसी प्रकार की बुझा पड़वानी है। केवल बन्दी छोड़ कबीर साहिब को पूजना है जो सभी दु:खों को हरने वाले संकट मोचन हैं।
सामवेद संख्या न. 822 उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड न. 5 श्लोक न. 8 (संत रामपाल जी महाराज द्वारा भाषा-भाष्य) :-
मनीषिभिः पवते पूव्र्यः कविनर्भिर्यतः परि कोशां असिष्यदत्।
त्रितस्य नाम जनयन्मधु क्षरन्निन्द्रस्य वायुं सख्याय वर्धयन्।।8।।
हिन्दी:-सनातन अर्थात् अविनाशी कबीर परमेश्वर हृदय से चाहने वाले श्रद्धा से भक्ति करने वाले भक्तात्मा को तीन मन्त्र उपेदश देकर पवित्र करके जन्म व मृत्यु से रहित करता है तथा उसके प्राण अर्थात् जीवन-स्वांसों को जो संस्कारवश अपने मित्र अर्थात् भक्त के गिनती के डाले हुए होते हैं को अपने भण्डार से पूर्ण रूप से बढ़ाता है। जिस कारण से परमेश्वर के वास्तविक आनन्द को अपने आशीर्वाद प्रसाद से प्राप्त करवाता है।
कबीर, देवी देव ठाढे भये, हमको ठौर बताओ।
जो मुझ(कबीर) को पूजैं नहीं, उनको लूटो खाओ।।
कबीर, काल जो पीसै पीसना, जोरा है पनिहार।
ये दो असल मजूर हैं, सतगुरु के दरबार।।
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