जानिये क्या है मंगलाचरण का भावार्थ ?

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मंगलाचरण का अर्थ



।। अथ मंगलाचरण ।।


गरीब, नमो नमो सत् पुरुष कुं, नमस्कार गुरु किन्ही ।।
सुरवर मुनिजन साधवा , संतो सर्वस दीन्ही ।। 1।।

अर्थ :- 

बंदी छोड़ गरीब दास जी महाराज सत् पुरुष और परमात्मा जी को बारम्बार नमस्कार करते हैं । 
देवता प्राणी मात्रः मनन सील साधुओं और संतों पर हम न्यो छावर हो जाते हैं ।

सत् गुरु साहिब संत , सब दंडवत प्रणाम ।।
आगे पीछे मध्य हुए , तिन कुं जा कुर्बान ।। 2।।

अर्थ :-

सच्चे परमपिता परमात्मा और सभी संतों को हम दंडवत प्रणाम करते हैं । और जो भी संत महा पुरुष पहले होकर चले गए और जो पीछे होने वाले हैं, तथा इस समय मौजूद है, उन पर हम कुर्बान हो जाते हैं ।

नराकार निर्विषम , काल जाल भय भजन्म ।।
निर्लेपम निज निर्गुण , अकाल अनुप बेसुन्न धुन्न ।। 3 ।।

अर्थ :-

वह परमपिता आकार में है। अर्थात सभी जगह मौजूद है। सभी विषय विकार रहित है। अर्थात काल के द्वारा बनाय गए जन्म मृत्यु सभी जाल के भय का नाश करनेवाला है। वह परमपिता निर्लेश है। अर्थात किसी भी विषय वास्तु  में आसक्त नहीं है। वह परम पिता हमेशा (सैदव) विद्य मान रहता है। उसका न तो आदि है , न अंत है , वह( सत् , रज , तम ) तीन गुणों से रहित है। वह हमारी कल्पना से परे है। कोई भी अपनी बुद्धि से अनुमान नहीं लगा सकता है। उसकी उपमा भी नही की जा सकती , वह बेसुन्न है। अर्थात अभाव रहित चैतन्य है। वह शब्द स्वरूप पूर्ण ब्रह्म है।

सोहम् सुरति समापतम , सकल समाना निरतिले ।।
उजल हिरम्बर हरदम, बे परवाह अथाह है वार पार नही मध्यंत ।। 4 ।।

अर्थ :-

सोहम ( शुध्द अहम ) का ध्यान करते हुए सर्व व्याप्त पूर्ण ब्रह्म में निरतर तल्लीन हो जाओ। वह उजाला हुआ हीरे की तरह हरदम चमकते हुए सोने के समान शुद्ध प्रकाश स्वरूप है , और प्रत्येक जीवों के श्वास में बसा हुआ है। वह प्रवाह से रहित , अचल है , जिसका कोई अंत नही है। वह समुदर की तरह इस पार उस पार बीच की गहराई को जैसे मापा नहीं जा सकता उसी तरह हमारा पूर्ण ब्रह्म है।

गरीब, जो सुमरित सिद्ध होइ , गण नायक गलताना ।।
करो अनुग्रह सोई , पारस पद परवाना ।। 5 ।।

अर्थ :-

बंदी छोड गरीब दास जी कहते हैं कि जिस नाम स्मरण मात्रः से सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं , ऐसे गणों के नायक ( गणेशजी ) जो सभी में लीन है। वह मेरे ऊपर कृपा करें ।

आदि गणेश मनाऊँ, गण नायक देवा ।।
चरण कमल ल्यौ लाऊ , आदि अंत करूँ सेवा ।। 6 ।।

अर्थ :-

मैं आदि गणेश ( मूल स्वरूप ब्रह्म ) को मनाता हूँ । जो गांव के नायक है , और सभी देवों के देव है । मैं उनके चरण कमलो में ध्यान लगता हुआ आदि से अंत तक उनकी सेवा करता रहूँगा ।

परम शक्ति संगीतम् , रिद्धि सिद्धि दाता सोई ।।
अवगत गुनाह अतितम्, सत् पुरुष निर्मोही ।। 7 ।।

अर्थ :-

उस परमपिता परमेश्वर की शक्ति ( महामाया ) हमेशा उसके साथ रहती है । वह रिद्धी ओर सिद्धि को देने वाला है। उसकी गति कोई नहीं जान सकता , वह तीनो गुणों से परे है । वह सत् पुरुष मोह से रहित है ।

जगदम्बा जगदीशम् , मंगल रूप मुरारी ।।
तन मन अरपु शिशम्, भक्ति मुक्ति भंडारी ।। 8 ।।

अर्थ :-

वह जो सम्पूर्ण जगत की माता ( आदि माया भगवती शक्ति ) है । जगत का स्वामी है । उस मंगल ( शुभ ) रूप भगवान मुरारी को मैं अपना तन मन और शीश अर्पण करता हूँ , वह परमेश्वर भक्ति द्वारा मुक्ति देने वाला भंडारी है ।

सुर नर मुनिजन ध्यावे , ब्रह्म विष्णु महेशा ।।
शेष सहंस मुख गावे, पूजे आदि गणेशा ।। 9।।

अर्थ :-

उसी परम पिता परमेश्वर के सभी देवता , मनुष्य (मानव) मुनि जन तथा ब्रह्मा विष्णु और शिवजी सभी ध्यान करते है। शेष नागजी अपने एक हजार मुखो से गाकर आदि गणेशजी ( मूल स्वरूप पूर्ण ब्रह्म ) जी की पूजा करते है।

इन्द्र कुबेर सरीखा , वरुण धर्मराय ध्यावे ।।
सुमरत जीवन जिका ,मन इच्छा फल पावे ।। 10 ।।

अर्थ :- 

देवताओ के राजा इन्द्रः , धन के स्वामी कुबेर , जैसे जल के देवता वरुण , और धर्मराय भी उसी ध्यान करते है । उस समर्थ का सभी जीवके आधार का स्मरण करके सभी मन वांछित फल प्राप्त करते है।

तेतीस कोट आधारा , ध्यावे सहस अठासी ।।
उतरे भव जल पारा , कटी है यम की फाँसी ।। 11 ।।

अर्थ :-

वह परमपिता परमेश्वर बंदी छोड़ सत् गुरु तेतीस करोड़ देवी देवताओंके आधार है। अठासी हजार शौनकादि ऋषि मुनि उनका ध्यान करते है। उनका ध्यान करने से ,सभी यमराज की फाँसी को काटकर संसार रूपी भवसागर से पार उतर जाते है।

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