जानिये यथार्थ (असली) जाप करने के मंत्र कौनसे है ?

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 वास्तविक 05 नाम और सतनाम व सारनाम का भेद


सन्त अनेक जगत में, सतगुरु सत् कबीर।
और
साचा शब्द कबीर का, प्रकट किया जग माही।
जैसा को तैसा कहै, वो तो निंदा नाही।।
उस कबीर साहेब जी की वाणी में असली पाँच नामों का जिक्र है। कबीर साहेबजी का एक शब्द है –

“कर नैनों दीदार महल में प्यारा है”
जो 32 कली का है जिसे नीचे पोस्ट किया जा रहा है। इस शब्द में उन पाँच नामों का न्यारा विवरण है।
ये पाँच नाम प्राइमरी पाठ है। इनके जाप से साधक भगति के योग्य बनता है। जिसका प्रमाण परमात्मा प्राप्त संत गरीबदासजी महाराज जी ने इस तरह किया है –
“पाँच नाम गुझ गायत्री, आत्मतत्व जगाओ।
ओम्, सोहम्, किलियं, हरियम्, श्रीयम्, ध्यायो।।”
विशेष:-
इसमें ज्योति निरंजन, ररंकार, ओंकार व् सतनाम नहीं है जिसे राधास्वामी पंथ में प्रदान किया जाता है। उनके जगह पर ओम्, किलियं, हरियम् व् श्रीयम् है। किन्तु पूर्ण मुक्ति के लिए पूर्ण कोर्स करना होता है जो सतगुरु के पास होता है।
“पाँच नाम” से आगे का पाठ है “दो अक्षर का नाम” और उसके बाद का पाठ है “एक अक्षर का नाम” जिसे सारनाम या सारशब्द भी कहा जाता है। दो और एक मिलकर तीन शब्द बनते है, जिसका जिक्र पवित्र गीता अ.17.23 में इस तरह हुआ है –
ओम् तत् सत् इति निर्देशः ब्रम्हणः त्रिविधः स्मृतः। 
(गीता अ.17.23)
सारी बाते संत शिरोमणि कबीर साहेब जी, परम संत नानकदेव जी एवं पवित्र ग्रन्थ गीता जी से भी प्रमाणित है।
परमात्मा प्राप्त संत नामदेवजी ने तीन नामों का भेद इस तरह दिया है –
नामा छिपा ओम तारी, पीछे सोहम् भेद विचारी।
सार शब्द पाया जद लोई, आवागवन बहुरि न होई।।
दो अक्षर के नाम को भी आदरणीय गरीबदास जी साहेब ने स्पष्ट किया है –
राम नाम जपकर थिर होई 
ओम् – तत् (सांकेतिक) मन्त्र दोई।
फिर लिखा है –
ओम् – तत् (सांकेतिक) सार संदेशा, 
मानों सतगुरु की उपदेशा।
इसी को कबीर साहेबजी ने फिर स्पष्ट किया है –
कह कबीर, सुनो धर्मदाशा, ओम् – तत् शब्द प्रकाशा।।

नानकदेवजी ने दो अक्षर के मन्त्र को प्राणसंगली में खोला है-

नामों में ना ओम् – तत् है, किलविष कटै ताहि।
कबीर, सतगुरु सो सतनाम दृढ़ावे, 
और गुरु कोई काम न आवे।
ओम् + तत् (सांकेतिक) मिलकर सतनाम बनता है। जो दो अक्षर का होता है।सतनाम में ओम् के साथ एक अक्षर का एक और मन्त्र होता है जिसका भेद आदरणीय नानकदेवजी ने
“एक ओंकार” सतनाम कहकर दिया है। जिसका सीधा सा अर्थ बनता है ओम् के साथ (एक) एक अक्षर का एक अन्य मन्त्र जुड़कर सतनाम बनता है जिसे पवित्र सिख समाज भी आजतक नहीं समझकर सतनाम सतनाम जपने में लगे है।
पाँच नाम के रेफरेंस कबीर साहेब जी की वाणी में देखिये
इस शब्द में
 -: : शब्द : :-

कर नैनों दीदार महल में प्यारा है


कर नैनों दीदार महलमें प्यारा है।।टेक।।


 काम क्रोध मद लोभ बिसारो, शील सँतोष क्षमा सत धारो।
 मद मांस मिथ्या तजि डारो, हो ज्ञान घोडै असवार, भरम से न्यारा है।1।

 धोती नेती बस्ती पाओ, आसन पदम जुगतसे लाओ। 
कुम्भक कर रेचक करवाओ, पहिले मूल सुधार कारज हो सारा है।2। 

मूल कँवल दल चतूर बखानो, किलियम जाप लाल रंग मानो।
 देव गनेश तहँ रोपा थानो, रिद्धि सिद्धि चँवर ढुलारा है।3। 

स्वाद चक्र षटदल विस्तारो, ब्रह्म सावित्री रूप निहारो। 
उलटि नागिनी का सिर मारो, तहाँ शब्द ओंकारा है।।4।। 

नाभी अष्ट कमल दल साजा, सेत सिंहासन बिष्णु बिराजा। 
हरियम् जाप तासु मुख गाजा, लछमी शिव आधारा है।।5।।

 द्वादश कमल हृदयेके माहीं, जंग गौर शिव ध्यान लगाई। 
सोहं शब्द तहाँ धुन छाई, गन करै जैजैकारा है।।6।। 
षोड्श कमल कंठ के माहीं, तेही मध बसे अविद्या बाई।
 हरि हर ब्रह्म चँवर ढुराई, जहँ श्रीयम् नाम उचारा है।।7।। 

तापर कंज कमल है भाई, बग भौंरा दुइ रूप लखाई। 
निज मन करत वहाँ ठकुराई, सो नैनन पिछवारा है।।8।। 
कमलन भेद किया निर्वारा, यह सब रचना पिंड मँझारा।
 सतसँग कर सतगुरु शिर धारा, वह सतनाम उचारा है।।9।।

 आँख कान मुख बन्द कराओ, अनहद झिंगा शब्द सुनाओ। 
दोनों तिल इक तार मिलाओ, तब देखो गुलजारा है।।10।। 

चंद सूर एक घर लाओ, सुषमन सेती ध्यान लगाओ।
 तिरबेनीके संधि समाओ, भौर उतर चल पारा है।।11।। 

घंटा शंख सुनो धुन दोई, सहस्र कमल दल जगमग होई।
 ता मध करता निरखो सोई, बंकनाल धस पारा है।।12।।

 डाकिनी शाकनी बहु किलकारे, जम किंकर धर्म दूत हकारे।
 सत्तनाम सुन भागे सारें, जब सतगुरु नाम उचारा है।।13।। 

गगन मँडल बिच उर्धमुख कुइया, गुरुमुख साधू भर भर पीया।
 निगुरो प्यास मरे बिन कीया, जाके हिये अँधियारा है।।14।।

 त्रिकुटी महलमें विद्या सारा, धनहर गरजे बजे नगारा।
 लाल बरन सूरज उजियारा, चतूर दलकमल मंझार शब्द ओंकारा है।15। 

साध सोई जिन यह गढ लीनहा, नौ दरवाजे परगट चीन्हा।
 दसवाँ खोल जाय जिन दीन्हा, जहाँ कुलुफ रहा मारा है।।16।।

 आगे सेत सुन्न है भाई, मानसरोवर पैठि अन्हाई।
 हंसन मिलि हंसा होई जाई, मिलै जो अमी अहारा है।।17।।

 किंगरी सारंग बजै सितारा, क्षर ब्रह्म सुन्न दरबारा। 
द्वादस भानु हंस उँजियारा, षट दल कमल मँझार शब्द ररंकारा है।।18।। 

महा सुन्न सिंध बिषमी घाटी, बिन सतगुरु पावै नहिं बाटी। 
व्याघर सिहं सरप बहु काटी, तहँ सहज अचिंत पसारा है।।19।।

 अष्ट दल कमल पारब्रह्म भाई, दहिने द्वादश अंचित रहाई।
 बायें दस दल सहज समाई, यो कमलन निरवारा है।।20।। 

पाँच ब्रह्म पांचों अँड बीनो, पाँच ब्रह्म निःअच्छर चीन्हों। 
चार मुकाम गुप्त तहँ कीन्हो, जा मध बंदीवान पुरुष दरबारा है।। 21।। 

दो पर्वतके संध निहारो, भँवर गुफा तहां संत पुकारो। 
हंसा करते केल अपारो, तहाँ गुरन दर्बारा है।।22।। 

सहस अठासी दीप रचाये, हीरे पन्ने महल जड़ाये। 
मुरली बजत अखंड सदा ये, तँह सोहं झनकारा है।।23।।

 सोहं हद तजी जब भाई, सत्तलोककी हद पुनि आई। 
उठत सुगंध महा अधिकाई, जाको वार न पारा है।।24।। 

षोडस भानु हंसको रूपा, बीना सत धुन बजै अनूपा। 
हंसा करत चँवर शिर भूपा, सत्त पुरुष दर्बारा है।।25।। 

कोटिन भानु उदय जो होई, एते ही पुनि चंद्र लखोई। 
पुरुष रोम सम एक न होई, ऐसा पुरुष दिदारा है।।26।। 

आगे अलख लोक है भाई, अलख पुरुषकी तहँ ठकुराई। 
अरबन सूर रोम सम नाहीं, ऐसा अलख निहारा है।।27।।

 ता पर अगम महल इक साजा, अगम पुरुष ताहिको राजा। 
खरबन सूर रोम इक लाजा, ऐसा अगम अपारा है।।28।।

 ता पर अकह लोक है भाई, पुरुष अनामि तहां रहाई।
 जो पहुँचा जानेगा वाही, कहन सुनन ते न्यारा है।।29।। 

काया भेद किया निरुवारा, यह सब रचना पिंड मँझारा। 
माया अविगत जाल पसारा, सो कारीगर भारा है।।30।। 

आदि माया कीन्ही चतूराई, झूठी बाजी पिंड दिखाई। 
अवगति रचना रची अँड माहीं, ताका प्रतिबिंब डारा है।।31।। 

शब्द बिहंगम चाल हमारी, कहैं कबीर सतगुरु दई तारी। 
खुले कपाट शब्द झनकारी, पिंड अंडके पार सो देश हमारा है।।32।। 

LORD KABIR

 


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Banti Kumar
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