महामुर्ख दयानन्द और ‘सत्यानाश प्रकाश’ की पोल खोल – भाग 03

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नियोग (भाग-1)

‘सत्यार्थ प्रकाश’ के चतुर्थ समुल्लास के क्रम सं0 120 से 149 तक की सामग्री पुनर्विवाह और नियोग विषय से संबंधित है। लिखा है कि

पुनर्विवाह और नियोग :-

द्विजों यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्णों में पुनर्विवाह कभी नहीं होने चाहिए। (4-121)

स्वामी जी ने पुनर्विवाह के कुछ दोष भी गिनाए हैं जैसे –

(1) पुनर्विवाह की अनुमति से जब चाहे पुरुष को स्त्री और स्त्री को पुरुष छोड़कर दूसरा विवाह कर सकते हैं।
(2) पत्नी की मृत्यु की स्थिति में अगर पुरुष दूसरा विवाह करता है तो पूर्व पत्नी के सामान आदि को लेकर और यदि पति की मृत्यु की स्थिति में स्त्री दूसरा विवाह करती है तो पूर्व पति के सामान आदि को लेकर कुटुम्ब वालों में झगड़ा होगा।
(3) यदि स्त्री और पुरुष दूसरा विवाह करते हैं तो उनका पतिव्रत और स्त्रीव्रत धर्म नष्ट हो जाएगा।
(4) विधवा स्त्री के साथ कोई कुंवारा पुरुष और विधुर पुरुष के साथ कोई कुंवारी कन्या विवाह न करेगी। अगर कोई ऐसा करता है तो यह अन्याय और अधर्म होगा। ऐसी स्थिति में पुरुष और स्त्री को नियोग की आवश्यकता होगी और यही धर्म है। (4-134)

किसी ने स्वामी जी से सवाल किया कि

 अगर स्त्री अथवा पुरुष में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है और उनके कोई संतान भी नहीं है तब अगर पुनर्विवाह न हो तो उनका कुल नष्ट हो जाएगा। पुनर्विवाह न होने की स्थिति में व्यभिचार और गर्भपात आदि बहुत से दुष्ट कर्म होंगे। इसलिए पुनर्विवाह होना अच्छा है। (4-122)

जवाब दिया गया कि

 ऐसी स्थिति में स्त्री और पुरुष ब्रह्मचर्य में स्थित रहे और वंश परंपरा के लिए स्वजाति का लड़का गोद ले लें। इससे कुल भी चलेगा और व्यभिचार भी न होगा और अगर ब्रह्मचारी न रह सके तो नियोग से संतानोत्पत्ति कर ले। पुनर्विवाह कभी न करें। 

आइए अब देखते हैं कि ‘नियोग’ क्या है ?

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“अगर किसी पुरुष की स्त्री मर गई है और उसके कोई संतान नहीं है तो वह पुरुष किसी नियुक्त विधवा स्त्री से यौन संबंध स्थापित कर संतान उत्पन्न कर सकता है। गर्भ स्थिति के निश्चय हो जाने पर नियुक्त स्त्री और पुरुष के संबंध खत्म हो जाएंगे और नियुक्ता स्त्री दो-तीन वर्ष तक लड़के का पालन करके नियुक्त पुरुष को दे देगी। ऐसे एक विधवा स्त्री दो अपने लिए और दो-दो चार अन्य पुरुषों के लिए अर्थात कुल 10 पुत्र उत्पन्न कर सकती है। “

(यहाँ यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि यदि कन्या उत्पन्न होती है तो नियोग की क्या ‘शर्ते रहेगी ?)

 “इसी प्रकार एक विधुर दो अपने लिए और दो-दो चार अन्य विधवाओं के लिए पुत्र उत्पन्न कर सकता है। ऐसे मिलकर 10-10 संतानोत्पत्ति की आज्ञा वेद में है।”

इमां त्वमिन्द्र मीढ्वः सुपुत्रां सुभगां कृणु।
दशास्यां पुत्राना धेहि पतिमेकादशं कृधि।
(ऋग्वेद 10-85-45)

भावार्थ ः ‘‘हे वीर्य सेचन हार ‘शक्तिशाली वर! तू इस विवाहित स्त्री या विधवा स्त्रियों को श्रेष्ठ पुत्र और सौभाग्य युक्त कर। इस विवाहित स्त्री से दस पुत्र उत्पन्न कर और ग्यारहवीं स्त्री को मान। हे स्त्री! तू भी विवाहित पुरुष या नियुक्त पुरुषों से दस संतान उत्पन्न कर और ग्यारहवें पति को समझ।’’ (4-125)

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