वेदों के अनुसार साधना से भी मुक्ति नही …

Share this Article:-
Rate This post❤️

“पवित्र वेदों अनुसार साधना का परिणाम केवल स्वर्ग-महास्वर्ग प्राप्ति, मुक्ति नहीं”

4 Vedas


पवित्र गीता अध्याय 9 के श्लोक 20, 21 में कहा है

कि जो मनोकामना(सकाम) सिद्धि के लिए मेरी पूजा तीनों वेदों में वर्णित साधना शास्त्र अनुकूल करते हैं वे अपने कर्मों के आधार पर महास्वर्ग में आनन्द मना कर फिर जन्म-मरण में आ जाते हैं अर्थात् यज्ञ चाहे शास्त्रानुकूल भी हो उनका एक मात्र लाभ सांसारिक भोग, स्वर्ग, और फिर नरक व चैरासी लाख जूनियाँ ही हैं।
 जब तक तीनों मंत्र
(ओ3म तथा तत् व सत् सांकेतिक)
 पूर्ण संत से प्राप्त नहीं होते।

naam diksha ad

 अध्याय 9 के श्लोक 22 में कहा है कि

जो निष्काम भाव से मेरी शास्त्रानुकूल पूजा करते हैं, उनकी पूजा की साधना की रक्षा मैं स्वयं करता हूँ, मुक्ति नहीं।

“शास्त्र विधि विरुद्ध साधना पतन का कारण”

पवित्र गीता अध्याय 9 के श्लोक 23, 24 में कहा है कि

 जो व्यक्ति अन्य देवताओं को पूजते हैं वे भी मेरी (काल जाल में रहने वाली) पूजा ही कर रहे हैं। परंतु उनकी यह पूजा अविधिपूर्वक है(अर्थात् शास्त्रविरूद्ध है भावार्थ है कि अन्य देवताओं को नहीं पूजना चाहिए)। क्योंकि सम्पूर्ण यज्ञों का भोक्ता व स्वामी मैं ही हूँ। वे भक्त मुझे अच्छी तरह नहीं जानते। इसलिए पतन को प्राप्त होते हैं। नरक व चैरासी लाख जूनियों का कष्ट।

जैसे
गीता अध्याय 3 श्लोक 14-15 में कहा है कि सर्व यज्ञों में प्रतिष्ठित अर्थात् सम्मानित, जिसको यज्ञ समर्पण की जाती है वह परमात्मा (सर्व गतम् ब्रह्म) पूर्ण ब्रह्म है। वही कर्माधार बना कर सर्व प्राणियों को प्रदान करता है। परन्तु पूर्ण सन्त न मिलने तक सर्व यज्ञों का भोग(आनन्द) काल (मन रूप में) ही भोगता है,

इसलिए कह रहा है कि मैं सर्व यज्ञों का भोक्ता व स्वामी हूँ।

LORD KABIR

 


Share this Article:-
Banti Kumar
Banti Kumar

📽️Video 📷Photo Editor | ✍️Blogger | ▶️Youtuber | 💡Creator | 🖌️Animator | 🎨Logo Designer | Proud Indian

Articles: 375

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


naam diksha ad