मन तूं सुख के सागर बस रे | Garibdas Ji Shabad by Sant Rampal Ji Maharaj
मन तूं सुख के सागर बसि रे, और न ऐसा जस रे।। टेक।। सर्व साेनें की लंका होती, रावण से रनधीरं।एक पलक में राज बिराजी, जम के परे जंजीरं।। 1।। उदै अस्त बीच चक्र चलैं थे, ऐसी जन ठकुराई।चुणक ऋाीष्वर…