जानिये ईसाई धर्म क्या है? शुरु से अंत तक …

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“पवित्र ईसाई धर्म का परिचय”

पवित्र बाईबल के उत्पत्ति ग्रन्थ, पृष्ठ नं. 1 से 3

परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टी रची तथा सातवें दिन विश्राम किया, प्रभु ने पाँच दिन तक अन्य रचना की, फिर छटवें दिन ईश्वर ने कहा कि हम मनुष्य को अपना ही स्वरूप बनायेंगे।
फिर परमेश्वर ने मनुष्य को अपना ही स्वरूप बनाया, नर-नारी करके उसकी सृष्टी की। फिर ईश्वर ने मनुष्यों के खाने के लिए केवल फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए। जो तुम्हारे भोजन के लिए हैं। छः दिन में पूरा कार्य करके परमेश्वर ऊपर तख्त पर जा विराजा अर्थात् विश्राम किया।
ईश्वर ने प्रथम आदम बनाया फिर उसकी पसली निकाल कर नारी हव्वा बनाई तथा दोनों को एक वाटिका में छोड़कर तख्त पर जा बैठे। फिर पृष्ठ नं. ृ 8 पर लिखा है कि ईश्वर ने मनुष्य जाति के खाने के लिए फलदार पेड़ तथा बीजदार पौधे बनाए और अन्य प्राणियों के लिए घास व पौधे बनाए।
भगवान ने मनुष्य को अपना प्रति रूप बनाया। इससे स्वसिद्ध है कि भगवान (अल्लाह) आकार में है और वह मनुष्य जैसा है। वह पूर्ण परमात्मा तो यहाँ तक रचना छः दिन में करक सातवंे दिन अपने सत्यलोक में तख्त पर विराजमान हो गया। इसके बाद प्रभु काल अर्थात् ज्योति निरंजन की भूल भुलइयाँ प्रारम्भ हो गई।
प्रभु काल ने हजरत आदम तथा हजरत हव्वा (जो श्री आदम जी की पत्नी थी) को कहा कि इस वाटिका में लगे हुए फलों को तुम खा सकते हो। लेकिन ये जो बीच वाले फल हैं इनको मत खाना, अगर खाओगे तो मर जाओगे। परमेश्वर ऐसा कह कर चला गया।
उसके बाद एक सर्प आया और कहा कि तुम ये बीच वाले फल क्यों नहीं खा रहे हो? हव्वा जी ने कहा कि भगवान (अल्लाह) ने हमें मना किया है कि अगर तुम इनको खाओगे तो मर जाओगे, इन्हें मत खाना। सर्प ने फिर कहा कि भगवान ने आपको बहकाया हुआ है। वह नहीं चाहता है कि तुम प्रभु के सदृश ज्ञानवान हो जाओ। यदि तुम इन फलों को खा लोगे तो तुम्हें अच्छे और बुरे का ज्ञान हो जाएगा। आपकी आँखों पर से अज्ञानता का पर्दा हट जाएगा जो प्रभु ने आपके ऊपर डाल रखा है। यह बात सर्प ने हव्वा को कही जो कि आदम की पत्नी थी। हव्वा ने अपने पति हजरत आदम से कहा कि हम ये फल खायेंगे तो हमें भले-बुरे का ज्ञान हो जाएगा। ऐसा ही हुआ। उन्होंने वह फल खा लिया तो उनकी आँखें खुल गई तथा वह अंधेरा हट गया जो भगवान ने उनके ऊपर अज्ञानता का पर्दा डाल रखा था। जब उन्होंने देखा कि हम दोनों निवस्त्र हैं तो शर्म आई और अंजीर के पत्तों को तोड़ कर बांधा।
कुछ दिनों के बाद जब शाम के समय घूमने के लिए प्रभु आया तो पूछा कि तुम कहाँ हो? आदम जी तथा हव्वा जी ने कहा कि हम छुपे हुए है, क्योंकि हम निवस्त्र हैं। भगवान ने कहा कि क्या तुमने उस बीच वाले फल को खा लिया? आदम ने कहा कि हाँ जी और उसके खाने के बाद हमें महसूस हुआ कि हम निवस्त्र हैं। प्रभु ने पूछा कि तुम्हें किसने बताया कि ये फल खाओ। आदम ने कहा कि हमारे को सर्प ने बताया और हमने वह खा लिया। उसने मेरी पत्नी हव्वा को बहका दिया और हमने उसके बहकावे में आकर ये फल खा लिया।
21. फिर यहोवा प्रभु ने आदम तथा उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अंगरखे पहना दिए।
22. फिर यहोवा प्रभु ने कहा मनुष्य भले-बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। इसलिए ऐसा न हो कि यह जीवन के वृक्ष वाला फल भी तोड़ कर खा ले और सदा जीवित रहे।
23. व 24. इसलिए प्रभु ने आदम व उसकी पत्नी को अदन के उद्यान से निकाल दिया। काल प्रभु ने उनको उस वाटिका से निकाल दिया और कहा कि अब तुम्हें यहाँ नहीं रहने दूँगा और तुझे अपना पेट भरने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ेगा और औरत को श्राप दिया कि तू हमेशा आदमी के पराधीन रहेगी।
{विशेष:- श्री मनु जी के पुत्र इक्ष्वाकु हुए तथा इसी वंश में राजा नाभीराज हुए। राजा नाभीराज के पुत्र श्री ऋषभदेव जी हुए जो पवित्र जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर माने जाते हैं। यही श्री ऋषभदेव जी का जीवात्मा ही बाबा आदम हुए। जैन धर्म की पुस्तक ‘‘आओ जैन धर्म को जाने‘‘ पृष्ठ 154 पर लिखा है।}
बाबा आदम व उनकी पत्नी हव्वा के संयोग से दो पुत्र उत्पन्न हुए। एक का नाम काईन तथा दूसरे का नाम हाबिल रखा। काईन खेती करता था। हाबिल भेड़-बकरियाँ चराया करता था। काईन कुछ धूर्त था परन्तु हाबिल ईश्वर पर विश्वास करने वाला था। काईन ने अपनी फसल का कुछ अंश प्रभु को भंेट किया। प्रभु ने अस्वीकार कर दिया। फिर हाबिल ने अपने भेड़ के पहले मैमने को प्रभु को भेंट किया, प्रभु ने स्वीकार किया। {यदि बाबा आदम में प्रभु बोल रहा होता तो कहता कि बेटा हाबिल मैं तेरे से प्रसन्न हूँ। आप ने जो मैमना भेंट किया यह आप की प्रभु के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। यह आप ही ले जाईये और इसे बेच कर धर्म (भण्डारा) कीजिए और अपनी भेड़ों की ऊन उतार कर रोजी-रोटी चलाईये तथा प्रभु में विश्वास रखिये। यह बाबा आदम के शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके पवित्र बाईबल में माँस खाने का प्रावधान पित्तरों ने किसी नबी में बोल कर करवाया है।}
इस से काईन को द्वेष हुआ तथा अपने छोटे भाई को मार दिया। कुछ समय के बाद आदम व हव्वा से एक पुत्र हुआ उसका नाम सेत रखा। सेत को फिर पुत्र हुआ उसका नाम एनोस रखा। उस समय से लोग प्रभु का नाम लेने लगे।
अब यहाँ पर देखना होगा कि जहाँ से पवित्र ईसाई व मुसलमान धर्म की शुरूआत हुई वहीं से मार-काट लोभ और लालच द्वेष परिपूर्ण है। आगे चलकर इसी परंपरा में ईसा मसीह जी का जन्म हुआ। इनकी पूज्य माता जी का नाम मरियम तथा पूज्य पिता जी का नाम यूसुफ था। परन्तु कुँवारी मरियम को गर्भ एक देवता से रहा था। इस पर यूसुफ ने आपत्ति की तथा मरियम को त्यागना चाहा तो स्वपन में (फरिश्ते) देवदूत ने ऐसा न करने को कहा तथा यूसुफ ने डर के मारे मरियम का त्याग न करके उसके साथ पति-पत्नी रूप में रहे। देवता से गर्भवती हुई मरियम ने हजरत ईसा को जन्म दिया। हजरत ईसा से पवित्र ईसाई धर्म की स्थापना हुई। ईसा मसीह के नियमों पर चलने वाले भक्त आत्मा ईसाई कहलाए तथा पवित्र ईसाई धर्म का उत्थान हुआ।
प्रमाण के लिए कुरान शरीफ में सूरः मर्यम-19 में तथा पवित्र बाईबल में मती रचित सुसमाचार मती=1ः25 पृष्ठ नं. ृ 1-2 पर।
हजरत ईसा जी को भी पूर्ण परमात्मा सत्यलोक से आकर मिले तथा एक परमेश्वर का मार्ग समझाया। इसके बाद ईसा जी एक ईश्वर की भक्ति समझाने लगे। लोगों ने बहुत विरोध किया। फिर भी वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। परन्तु बीच-बीच में ब्रह्म(काल/ज्योति निरंजन) के फरिश्ते हजरत ईसा जी को विचलित करते रहे तथा वास्तविक ज्ञान को दूर रखा।
हजरत यीशु का जन्म तथा मृत्यु व जो जो भी चमत्कार किए वे पहले ब्रह्म(ज्योति निरंजन) ृ के द्वारा निर्धारित थे। यह प्रमाण पवित्र बाईबल में यूहन्ना ग्रन्थ अध्याय 9 श्लोक 1 से 34 में 0है कि एक व्यक्ति जन्म से अंधा था। वह हजरत यीशु मसीह के पास आया। तथा हजरत यीशु जी के आशीर्वाद से स्वस्थ हो गया उसे आँखों से दिखाई देने लगा। शिष्यों ने पूछा हे मसीह जी इस व्यक्ति ने या इसके माता-पिता ने कौन-सा ऐसा पाप किया था जिस कारण से यह अंधा हुआ तथा माता-पिता को अंधा पुत्र प्राप्त हुआ। यीशु जी ने कहा कि इसका कोई पाप नहीं है जिसके कारण यह अंधा हुआ है तथा न ही इसके माता-पिता का कोई पाप है जिस कारण उन्हें अंधा पुत्र प्राप्त हुआ। यह तो इसलिए हुआ है कि प्रभु की महिमा प्रकट करनी है। भावार्थ यह है कि यदि पाप होता तो हजरत यीशु आँखे ठीक नहीं कर सकते थे। तथा काल रूपी ब्रह्म ने यीशु जी की महिमा बनाने के लिए अपनी शक्ति से किसी प्रेत द्वारा अन्धा करा रखा था। जो यीशु जी के पास आते ही निकल गया और व्यक्ति को दिखाई देने लगा था। यह सर्व काल ज्योति निरंजन (ब्रह्म) का सुनियोजित जाल है। जिस कारण उसके द्वारा भेजे अवतारों की महिमा बन जाए तथा सर्व आस पास के प्राणी उस पर आसक्त होकर उसके द्वारा बताई ब्रह्म साधना पर अटल हो जाऐं। जब परमेश्वर का संदेशवाहक आए तो कोई विश्वास न करें। जैसे हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीडि़त व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पित्तर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे नबी के पास भेजकर किसी फरिश्ते को नबी के शरीर में प्रवेश करके उसके द्वारा प्रेत को भगा देता है। उसके अवतार (मसीह/नबी) की महिमा बन जाती है। या कोई साधक पहले का भक्ति युक्त होता है। उससे भी ऐसे चमत्कार उसी की कमाई से करवा देता है तथा उस साधक की महिमा करवा कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त सन्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर उस सन्त को नरक में डाल देता है।
इसी तरह का उदाहरण पवित्र बाईबल ‘शमूएल‘ नामक अध्याय 16ः14-23 में है कि शाऊल नामक व्यक्ति को एक प्रेत दुःखी करता था। उसके लिए बालक दाऊद को बुलाया जिससे उसको कुछ राहत मिलती थी। क्योंकि हजरत दाऊद भी ज्योति निरंजन का भेजा हुआ पूर्व शक्ति युक्त साधक पूर्व कमाई वाला था। जिसको ‘जबूर‘ नामक किताब ज्योति निरंजन/ब्रह्म ने बड़ा होने पर उतारी।
हजरत ईसा मसीह की मृत्यु पूर्व ही निर्धारित थी। 
स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरी मृत्यु निकट है तथा तुम (मेरे बारह शिष्यों) में से ही एक मुझे विरोधियों को पकड़ाएगा। उसी रात्री में सर्व शिष्यों सहित ईसा जी एक पर्वत पर चले गए। वहाँ उनका दिल घबराने लगा। अपने शिष्यों से कहा कि आप जागते रहना। मेरा दिल घबरा रहा है। मेरा जी निकला जा रहा है। तुम भी परमात्मा से मेरे जीवन की रक्षा के लिए, प्रार्थना करो, ऐसा कह कर हजरत यीशु जी ने कुछ दूरी पर जाकर स्वयं हजरत इसा जी ने मुंह के बल पृथ्वी पर गिरकर प्रार्थना की (38,39), वापिस चेलों के पास लौटे तो वे सो रहे थे। यीशु ने कहा क्या तुम मेरे साथ एक पल भी नहीं जाग सकते। जागते रहो, प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में असफल न हो जाओ। मेरी आत्मा तो मरने को तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है। इसी प्रकार यीशु मसीह ने तीन बार कुछ दूर पर जाकर प्रार्थना की तथा फिर वापिस आए तो सर्व शिष्यांे को तीनों बार सोते पाया। ईसा मसीह के प्राण जाने को थे, परन्तु चेला राम मस्ती में सोए पड़े हैं। गुरु जी की आपत्ति का कोई गम नहीं।
तीसरी बार भी सोए पाया तब कहा मेरा समय आ गया है, तुम अब भी सोए पड़े हो। इतने में तलवार तथा लाठी लेकर बहुत बड़ी भीड़ आई तथा उनके साथ एक ईसा मसीह का खास शिष्य था, जिसने तीस रूपये के लालच में अपने गुरु जी को विरोधियों के हवाले कर दिया।(मत्ती 26ः24-55 पृष्ठ42-44)
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुण्यात्मा ईसा मसीह जी को केवल अपना पूर्व का निर्धारित जीवन काल ही प्राप्त हुआ जो उनके विषय में पहले ही पूर्व धर्म शास्त्रों में लिखा था। ‘‘मत्ती रचित समाचार‘‘ पृष्ठ1 पर लिखा है कि याकुब का पुत्र युसूफ था। युसूफ ही मरियम का पति था जिस से हजरत ईसा मसीह का जन्म हुआ। मरियम को एक फरिश्ते से गर्भ रहा था।(मत्ती 1ः1-18)
एक स्थान पर हजरत ईसा जी ने कहा है कि मैं याकुब (जो मरियम के पति का भी पिता था) से भी पहले था। संसार की दृष्टि में ईसा मसीह का दादा जी याकुब था। यदि ईसा जी ृ वाली आत्मा बोल रही होती तो ईसा जी नहीं कहते कि मैं याकुब अर्थात् अपने दादा जी से भी पहले था। इससे सिद्ध है कि ईसा जी में कोई अन्य फरिश्ता बोल रहा था जो प्रेतवत प्रवेश कर जाता था, भविष्यवाणी कर जाता था तथा वही चमत्कार करता था। यदि यह माने कि हो सकता है याकूब वाली आत्मा ही हजरत इसा रूप में जन्मी हो तो बाईबल में लिखा लेख गलत सिद्ध होता है कि ईसा को परमात्मा ने अपने पास से भेजा था। ईसा जी प्रभु के पुत्र थे।
एक और अनोखा उदाहरण ग्रन्थ बाईबल 2 कुरिन्थियों 2ः12-17 पृष्ठ259-260 में स्पष्ट लिखा है कि एक आत्मा किसी में प्रवेश करके पत्र द्वारा लिख रही है। कहा है कि 14. परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हम को जय उत्सव में लिए फिरता है और अपने ज्ञान की सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है। 17. हम उन लोगों में से नहीं हैं जो परमेश्वर के वचनों में मिलावट करते हैं। हम तो मन की सच्चाई और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर की उपस्थिति जान कर मसीह में बोलते हैं।
उपरोक्त विवरण पवित्र बाईबल के अध्याय कुरिन्थियों 2ः12 से 18 पृष्ठ 259-260 से ज्यों का त्यों लिखा है। इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं 1. मसीहा (नबी अर्थात् अवतार) में कोई अन्य फरिश्ता बोलकर किताबें लिखाता है। जो प्रभु का भेजा हुआ होता है वह तो प्रभु का संदेश ज्यों का त्यों बिना परिवर्तन किए सुनाता है। 2. दूसरी बात यह भी सिद्ध हुई कि मसीह (नबी) में अन्य आत्मा भी बोलते हैं जो अपनी तरफ से मिलावट करके भी बोलते हैं। यही कारण है कि र्कुआन शरीफ (मजीद) तथा बाईबल आदि में माँस खाने का आदेश अन्य आत्माओं का है, प्रभु का नहीं है। उपरोक्त विवरण से यह भी स्पष्ट है कि फरिश्ता कह रहा है कि प्रभु महिमा रूपी सुगंध फैलाने के लिए प्रेत की तरह प्रवेश करके प्रभु हमारा ही प्रयोग किसी मसीह (अवतार/नबी) में करता है। चमत्कार करते हैं फरिश्ते, नाम होता है नबी का तथा भोली आत्माऐं उस नबी को पूर्ण शक्ति युक्त मानकर उसी के अनुयाई बन जाते हैं। उसी के द्वारा बताए भक्ति मार्ग पर दृढ़ हो जाते हैं। जिस समय पूर्ण परमात्मा का संदेशवाहक आता है तो उसकी बातों पर अविश्वास करते हैं। यह सब ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का जाल है।

ईसा मसीह की मृत्यु –

एक पर्वत पर ईसा जी 30 वर्ष की आयु में प्रभु से प्राण रक्षा के लिए घबराए हुए बार-बार प्रार्थना कर रहे थे। उसी समय उन्हीं का एक शिष्य 30 रूपये के लालच में अपने गुरु जी के विरोधियों को साथ लेकर उसी पर्वत पर आया वे तलवार तथा लाठियां लिए हुए थे। विरोधियों की भीड़ ने उस गुप्त स्थान से ईसा जी को पकड़ा जहाँ वह छुप कर रात्री बिताया करता था। क्योंकि हजरत मूसा जी के अनुयाई यहूदी ईसा जी के जानी दुश्मन हो गए थे। उस समय के महन्तांे तथा संतों व मन्दिरों के पूजारियों को डर हो गया था कि यदि हमारे अनुयाई हजरत ईसा मसीह के पास चले जायेंगे तो हमारी पूजा का धन कम हो जाएगा। ईसा मसही जी को पकड़ कर राज्यपाल के पास ले गए तथा कहा कि यह पाखण्डी है। झूठा नबी बन कर दुनिया को ठगता है। इसने बहुतों के घर उजाड़ दिए हैं। इसे रौंद(क्रस) दिया जाए। राज्यपाल ने पहले मना किया कि संत, साधु को दुःखी नहीं करते, पाप लगता है। परन्तु भीड़ अधिक थी, नारे लगाने लगी इसे रौंद (क्रस कर) दो। तब राज्यपाल ने कहा जैसे उचित समझो करो। तीस वर्ष की आयु में ईसा जी को दीवार के साथ लगे अंग्रेजी के अक्षर ज् (टी) के आकार की लकड़ी के साथ खड़ा करके दोनों हाथों की हथेलियों में लोहे की मोटी कील (मेख) गाड़ दी। ईसा जी की मृत्यु असहनीय पीड़ा से हो गई। मृत्यु से पहले हजरत ईसा जी ने उच्चे स्वर में कहा – हे मेरे प्रभु ! आपने मुझे क्यों त्याग दिया ? कुछ दिनों के बाद हजरत ईसा जी फिर दिखाई दिए तथा फिर कुछ स्थानों पर दर्शन व प्रवचन करके अन्तध्र्यान हो गए। (पवित्र बाईबल मती 27 तथा 28/20 पृष्ठ45 से 48)
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि यह ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) अपने अवतार को भी समय पर धोखा दे जाता है। पूर्ण परमात्मा ही भक्ति की आस्था बनाए रखने के लिए स्वयं प्रकट होता है। पूर्ण परमात्मा ने ही ईसा जी की मृत्यु के पश्चात् ईसा जी का रूप धारण करके प्रकट ृ होकर ईसाईयों के विश्वास को प्रभु भक्ति पर दृढ़ रखा, नहीं तो ईसा जी के पूर्व चमत्कारों को ृ देखते हुए ईसा जी का अंत देखकर कोई भी व्यक्ति भक्ति साधना नहीं करता, नास्तिक हो जाते। (प्रमाण पवित्र बाईबल में यूहन्ना ग्रन्थ अध्याय 16 श्लोक 4 से 15) ब्रह्म(काल) यही चाहता है। काल (ब्रह्म) पुण्यात्माओं को अपना अवतार (रसूल) बना कर भेजता है। फिर चमत्कारों द्वारा उसको भक्ति कमाई रहित करवा देता है। उसी में कुछ फरिश्तों (देवताओं) को भी प्रवेश करके कुछ चमत्कार फरिश्तों द्वारा उनकी पूर्व भक्ति धन से करवाता है। उनको भी शक्ति हीन कर देता है। काल के भेजे अवतार अन्त में वे किसी तरह कष्ट प्राप्त करके मृत्यु को प्राप्त हों। इस प्रकार ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) के द्वारा भेजे नबियों (अवतारों) की महिमा हो जाती है। अनजान साधक उनसे प्रभावित होकर उसी साधना पर अडिग हो जाते हैं। जब पूर्ण परमात्मा या उनका संदेशवाहक वास्तविक भक्ति ज्ञान व साधना समझाने की कोशिश करता है तो कोई नहीं सुनता तथा अविश्वास व्यक्त करते हैं। यह जाल काल प्रभु का है। जिसे केवल पूर्ण परमात्मा ही बताता है तथा सत्य भक्ति प्रदान करके आजीवन साधक की रक्षा करता है। सत्य भक्ति करके साधक पूर्ण मोक्ष को प्राप्त करता है।
LORD KABIR

 

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Banti Kumar
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