जानिये कैसे एक सती ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव को बना दिया था बालक ?

Share this Article:-
Rate This post❤️

सती अनुसूईया – जिन्होने त्रिदेवो को बना दिया था बालक

सती अनुसूईया 

सती अनुसूईया श्री अत्री ऋषि की पत्नी थी। जो अपने पतिव्रता धर्म के कारण सुप्रसिद्ध थी।

 एक दिन देव ऋषि नारद जी भगवान विष्णु जी से मिलने विष्णु लोक में गए। श्री विष्णु जी घर पर उपस्थित नहीं थे। श्री लक्ष्मी जी घर पर अकेली थी। बात बातों में नारद जी ने अत्री ऋषि की पत्नी अनुसूईया जी की सुंदरता तथा उसके पतिव्रता धर्म की अति महिमा की। जिस कारण से लक्ष्मी जी को अनुसूईया के प्रति ईर्षा हो गई तथा उसके पतिव्रता धर्म को खण्ड करवाने की युक्ति सोचने लगी।

naam diksha ad

नारद जी वहाँ से चल कर श्री शिव शंकर जी के लोक में उनसे मिलने के उद्देश्य से  गए। वहाँ पर भी देवी पार्वती जी ही घर पर थी, श्री शिव जी घर पर नहीं थे। श्री नारद जी ने बात-बातों में सती अनुसूईया जी के पतिव्रत धर्म व सुंदरता की अति महिमा सुनाई तथा श्री ब्रह्मा लोक को प्रस्थान किया। देवी पार्वती को अनुसूईया के प्रति ईर्षा हो गई कि ऐसी पतिव्रता कौन हो गई जिसकी चर्चा सर्व जगत में हो रही है। पार्वती जी भी अनुसूईया के पतिव्रत धर्म को खण्ड करवाने का उपाय सोचने लगी।

नारद जी श्री ब्रह्मा लोक में पहुँचे तो श्री ब्रह्मा जी की पत्नी श्री सावित्री जी ही घर पर उपस्थित थी, श्री ब्रह्मा जी नहीं थे। ऋषि नारद जी ने वहाँ पर भी सती अनुसूईया के पतिव्रत धर्म तथा सुंदरता की अति महिमा कही तथा वहाँ से चल पड़े। देवी सावित्री जी भी अनुसूईया से ईर्षा करने लगी तथा अनुसूईया के पतिव्रत धर्म को खण्ड करवाने का उपाय सोचने लगी।

तीनों (सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती) इक्ट्ठी हुई तथा अनुसूईया के पतिव्रत धर्म को खण्ड कराने की युक्ति निकाली कि अपने-अपने पतियों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) को भेज कर अनुसूईया का पतिव्रत धर्म खण्ड कराना है। उसे अपने पतिव्रत धर्म का अधिक घमण्ड है। तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) अपने-अपने निवास स्थान पर पहुँचे।

तीनों देवियों ने अनुसूईया का पतिव्रत धर्म खण्ड करने की ज़िद्द की। तीनों भगवानों ने बहुत समझाया कि यह पाप हमसे मत करवाओ। परंतु तीनों देवी (सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती) टस से मस नहीं हुई।

तीनों भगवानों ने साधु वेश धारण किया तथा अत्रि ऋषि के आश्रम पर पहुँचे। उस समय अनुसूईया जी आश्रम पर अकेली थी।  साधुवेश में तीन अतिथियों को द्वार पर देख कर अनुसूईया ने भोजन ग्रहण करने का आग्रह किया।

 तीनों साधूओं ने कहा कि हम आपका भोजन अवश्य ग्रहण करेंगे। परन्तु एक शर्त पर कि आप निःवस्त्र होकर भोजन कराओगी।
अनुसूईया ने साधूओं के शाप के भय से तथा अतिथि सेवा से वंचित रहने के पाप के भय से परमात्मा से प्रार्थना की कि

 हे परमेश्वर! इन तीनों को छः-छः महीने के बच्चे की आयु के शिशु बनाओ। जिससे मेरा पतिव्रत धर्म भी खण्ड ना हो तथा साधुओं को आहार भी प्राप्त हो व अतिथि सेवा न करने का पाप भी न लगे। 

परमेश्वर की कृपा से तीनों देवता छः-छः महीने के बच्चे बन गए तथा अनुसूईया ने तीनों को निःवस्त्र होकर दूध पिलाया तथा पालने में लेटा दिया।

तीनों देवता वापिस न लौटने के कारण तीनों देवी (सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती) अत्रि ऋषि के आश्रम पर गई।
अनुसूईया से अपने पतियों के विषय में पूछा कि क्या आपके पास हमारे पति (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) आए थे।
अनुसूईया ने कहा कि ये तीनों पालने में झूल रहे हैं। ये मुझसे निःवस्त्र होकर भोजन ग्रहण करने की इच्छा रखते थे। इसलिए इनका शिशु रूप होना आवश्यक था।

 तीनों देवियों ने तीनों भगवानों को पालने में शिशु रूप में लेटे देखा तथा पहचानने में असमर्थ रही। तब सती अनुसूईया के पतिव्रत धर्म की महिमा कही कि आप वास्तव में पतिव्रता पत्नी हो। हमसे ईर्षावश यह गलती हुई है। ये तीनों तो मना कर रहे थे। परन्तु हमारे हठ के समक्ष इन्होने यह घृणित कार्य करने की चेष्टा की थी। कृप्या आप इन्हें पुनः उसी अवस्था में कीजिए। आपकी हम आभारी होंगी।

अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूईया ने परमेश्वर से अर्ज़ की
 जिस कारण से तीनों बालक उसी (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) अवस्था में हो गए तथा अनुसूईया की अति प्रशंसा की।

 अत्रि ऋषि व अनुसूईया से तीनों भगवानों ने वर मांगने को कहा।
तब अनुसूईया ने कहा कि आप तीनों हमारे घर बालक बन कर पुत्र रूप में आएँ। हम निःसंतान हैं।

 तीनों भगवानों ने तथास्तु कहा तथा अपनी-अपनी पत्नियों के साथ अपने-अपने स्थान को प्रस्थान कर गए।

कालान्तर में दतात्रेय रूप में भगवान विष्णु का जन्म अनुसूईया के गर्भ से हुआ तथा ब्रह्मा जी का चन्द्रमा तथा शिव जी का दुर्वासा रुप में अत्रि की पत्नी अनुसूईया के गर्भ से जन्म हुआ। इस प्रकार श्री दतात्रेय जी का अविर्भाव अनुसूईया के गर्भ से हुआ। 
दतात्रेय जी ने चौबीस गुरूओं से शिक्षा पाई। भगवान दत्त (दत्तात्रेय) जी के नाम पर ‘दत्त’ सम्प्रदाय दक्षिण भारत में विशेष प्रसिद्ध हैं। गिगनार क्षेत्र में श्री दत्तात्रेय जी का सिद्ध पीठ है। दक्षिण भारत में इनके कई मंदिर हैं।

By- JKBK

Follow On Google+

Click Here..

LORD KABIR

 


Share this Article:-
Banti Kumar
Banti Kumar

📽️Video 📷Photo Editor | ✍️Blogger | ▶️Youtuber | 💡Creator | 🖌️Animator | 🎨Logo Designer | Proud Indian

Articles: 375

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


naam diksha ad