भक्ति बिना बनोगी कुतिया , राम भजो न रांडो – पुहलो बाई की नसीहत

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पुहलो बाई की नसीहत

एक राजा ने पुहलो बाई के ज्ञान विचार सुने ,बहुत प्रभावित हुआ ।उस राजा की तीन रानियाँ थी । राजा ने अपनी रानियों को पुहलो बाई के विषय मे बताया । राजा ने कई बार पुहलो बाई भक्तिन की अपनी रानियो के सामने प्रशंसा की ।अपने पति के मुख से अन्य स्त्री की प्रशंसा सुनकर रानियों को अच्छा नही लगा । परंतु कुछ बोल नही सकी । उन्होने भक्तमति पुहलो बाई को देखने की इच्छा व्यक्त की ।

राजा ने पुहलो बाई को अपने घर पर सत्संग करने के लिऐ कहा तो पुहलो बाई ने सत्संग की तिथि तथा समय राजा को बता दिया । सत्संग के दिन रानियो ने अति सुंदर तथा कीमती वस्त्र पहने तथा सब आभूषण पहने । अपनी सुन्दरता दिखाने के लिए कोई कसर नही छोड़ी । रानियो ने सोचा था की पुहलो बाई बहुत सुन्दर होगी । भक्तमति पुहलो बाई राजा के घर आई ।
उसने खद्दर का मैला सा वस्त्र धारण कर रखा था । हाथ मे माला थी , चेहरे का रंग भी साफ नही था । भक्तमति पुहलो को देखकर तीनो रानियाँ खिल खिलाकर हँसने लगी और बोली कि यह है वह पुहलो , हमने तो सोचा था कि बहुत सुन्दर होगी । उनकी बात सुनकर भक्तमति पुहलो बाई ने कहा कि :

वस्त्र आभूषण तन की शोभा , यह तन कच्चो भण्डो ।
भक्ति बिना बनोगी कुतिया , राम भजो न रांडो ।।

भावार्थ :  सुन्दर वस्त्र तथा आभूषण शरीर की शोभा बढाते है । यह शरीर नाशवान है जैसे कच्चा घड़ा होता है । यह शरीर क्षण भंगुर है । ना जाने किस कारण से , किस आयु मे और कब नष्ट हो जाये । यदि भक्ति नही की तो अगले जन्म मे कुतिया का जन्म पाओगी । फिर नि वस्त्र भटकी फिरोगी । इसलिये कहा है राण्डो अर्थात् स्त्रियां भक्ति करो ।
राण्ड शब्द विधवा के लिये प्रयोग होता है । परंतु सामान्य रीति मे स्त्रियां अपनी प्रिय सखियो को प्यार से सम्बंधित करने मे प्रयोग किया करती थी । अब शिक्षित होने पर यह शब्द प्रयोग नही होता । भक्तमति पुहलो बाई ने सत्संग सुनाया ।

कबीर परमेश्वर जी की साखिया सुनाई :

कबीर , राम रटते कोढी भलो , चू चू पड़े जो चाम ।
सुन्दर देहि किस काम कि, जा मुख नाहि नाम ।।

कबीर , नही भरोसा देहि का, विनश जाए छिन माहि ।
श्वास उश्वांस मे नाम जपो , और यत्न कुछ नाहि ।।

श्वास उश्वास मे नाम जपो , व्यार्था श्वास मत खोओ ।
ना जाने इस श्वास का, आवन हो के ना होय ।।

सर्व सोने की लंका थी , रावण से रणधीरम ।
एक पलक मे राज्य गया , जम के पडे जंजीरम ।।

मर्द गर्द मे मिल गये , रावण से रणधीरम ।
कंस केसि , चाणूर से , हिरणाकुश बलबीरम् ।।

गरीब, तेरी क्या बुनियाद है, जीव जन्म धरि लेत ।
दास गरीब हरि नाम बिन , खाली रह जा खेत ।।

भक्तिन पुहलो बाई ने इस संसार की वास्तविकता बताई तथा भक्ति बिना होने वाले कष्ट बताये । छोटे  से राज्य केस टुकड़े को प्राप्त करके आप इतना गर्व कर रहे हो , यह व्यर्थ है । लंका का राजा रावण ने सोने के मकान बना रखे थे । सत्य भक्ति ना करने से राज्य भी गया , स्वर्ण भी यही रहे गया , नर्क का भागी बना । राजा रानियो ने उपदेश लेकर भक्ति की तथा जीवन धन्य बनाया ।

कबीर , हरि के नाम बिन, राजा रषभ होय ।
मिट्टी लदे कुम्हार के , घास न नीरै कोए ।।

भगवान  की भक्ति नी करने से राजा गधे का शरीर प्राप्त करता है । कुम्हार के घर पर मिट्टी ढोता है , घास स्वामं जंगल मे खाकर आता है ।

 फिर पीछे तू पशुआ किजै , दीजै बैल बनाय ।
चार पहर जंगल मे डोले, तो नहि उदर भराय ।।

सिर पर सीग दिये मन बौरे, दुम से मच्छर उड़ाये ।
कांधै जुआ जोतै कूआ , कोदो का भुस खाय ।।

भावार्थ : गधे का शरीर पूरा करके वह प्राणी बैल की योनि प्राप्त करता है । मानव शरीर मे जीव को कितनी सुविधाऐ प्राप्त थी । भूख लगते ही खाना खाओ , दूध पीओ ,चाय पीओ , प्यास लगे तो पानी पी लो । भक्ति न करने से वह प्राणी बैल बनकर सुबह से शाम तक चार पहर अर्थात् 12 घण्टे तक जंगल मे फिरता है , हल मे जोता जाता है। दिन मे केवल दो बार आहार बैल को खिलाया जाता है । दोपहर 12 बजे तथा रात्रि के 1 बजे के बीच मे भूख लगी है और चारो और चारा भी पड़ा होता है , लेकिन खा नही सकता । हाली उसको घास नही खाने देता, पानी भी समय पर दिन मे दो या तीन बार पिलाया जाता है । सिर पर सीग तथा एक दुम (पूछ) लगे होगे । जब मानव शरीर मे था तब वह जीव कूलर ,पंखे, तथा ए सी कमरो मे रहता था । अब एक दुम है , इसको चाहे कूलर की जगह चाहे पंखे की जगह प्रयोग करो ,उसी से मच्छर उड़ाता है ।

।। जय बन्दी छोड़ की ।।

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LORD KABIR

 

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Banti Kumar
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