महर्षि दयानन्द का महाअज्ञान
देखिये पूरी कहानी The EnD तक
नोटः- हमारा उद्देश्य किसी की निंदा करना नही है बल्कि सच्चाई से अवगत कराना है ।
स्वामी दयानन्द द्वारा रचित “सत्यार्थ प्रकाश ” में
समाजनाश की झलक —
‘‘सत्यार्थ प्रकाश’’ का ज्ञान।
कृपया देखें समुल्लास-4 प ष्ठ-70
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समु.-4 पृष्ठ-71पर लिखा है
कि कैरी आँखों वाली लड़की से विवाह मत करो,
दांत युक्त लड़की से विवाह करो, किसी का नाम पार्वती, गोदावरी, गोमति आदि नदियों और पर्वतों पर हो उस लड़की से विवाह मत करो।
क्या महर्षि दयानन्द के विद्यान अनुसार बच्चों का विवाह हो सकेगा?
नोट – करे फिर तो शिव ने भी गलती कर दी पार्वती से शादी करके..
सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास-4 पृष्ठ-71 पर ही लिखा है
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कि 24 वर्ष की स्त्री 48 वर्ष के पुरूष का विवाह करना उत्तम है।
क्या ये सही है ?
सत्यार्थ प्रकाश>>
समुल्लास-4 प ष्ठ-70 पर लिखा है
विवाह के समय पिता के गोत्र तथा माता के कुल (गोत्रा) की छः पीढियों को छोड़ कर लड़के -लड़की का विवाह करें।
जिस किसी कुल में किसी एक व्यक्ति को निम्न रोगों में से एक भी रोग हो तो उस पूरे कुल के लड़के तथा लड़की से विवाह न करें। वे रोग हैं:-
बवासीर, दमा, खांसी, अमाश्य (पेट की गड़बड़ी) मिरगी, श्वेत कुष्ट और गलित कुष्ट रोग तथा जिन व्यक्तियों के शरीर पर बड़े-2 बाल हों उनके पूरे कुल को त्याग दें। जो वेदों का अध्ययन न करते हों उनके कुल को त्याग दें।
नोट – अगर ये रोग विवाह के बाद हो जाये तो क्या
बीवी बच्चो को छोड दे.
सत्यार्थ प्रकाश>>
फिर महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास-8 पृष्ठ
197,198 पर लिखा है
सूर्य पर पृथ्वी की तरह सब प्रजा बसती हैं। इसी प्रकार सर्व पदार्थ हैं। इन्हीं वेदों को सूर्य (आग के गोले) पर रहने वाले मनुष्य पढ़ते हैं।
क्या सूर्य पर कभी प्रजा हो सकती है ?
वेद गीता या कौन सी किताब मे लिखा
है ऐसा..
सत्यार्थ प्रकाश पेज 101 पर लिखा है
“महिला अगर गर्भवती है तो पुरुष उस महिला के साथ 1 वर्ष तक सम्भोग न करे , अगर न रहा जाये ?
तो किसी विधवा स्त्री से “नियोग ” सम्भोग कर लेवे और संतान उत्पत्ति कर लेवे”
{स्म्मुलास ४ पृष्ट 101 }
स्वामी दयानन्द ने विधवा विवाह न करने का कारण
बताया है ” पुन : विवाह करने से स्त्री का पतिव्रता धर्म नष्ट हो जायेगा “
पृष्ट 99 स्म्मुलास ४ में ही लिखा है
विधवा स्त्री ग्यारह पुरुषों के साथ नियोग { सम्भोग }
पशु तुल्य व्यवहार कर सकती है !
वाह रे दयानन्द क्या यह कुकर्म करने के बाद उस
स्त्री का पतिव्रता धर्म सुरक्षित रहेगा ?
सत्यार्थ प्रकाश के सम्मुल्लास चार के पेज 100 पर लिखा है
अगर किसी महिला का पति विदेश में धन कमाने के लिए गया हो ! तो वह महिला तीन साल पति का इंतजार करे उसके बाद किसी दुसरे पुरुष के साथ :” नियोग” {सम्भोग } करके बच्चा पैदा कर ले !
अगर किसी कारण वश दुसरे पुरुष से गर्भ धारण न हो तो तीसरे आदमी से , और उस से भी न हो तो , चोथे -पांचवे -छ्टे अर्थात ग्यारहवें पुरुष से सम्बन्ध बना कर
बच्चा उत्पन्न कर ले ! और दुसरे या ग्यारहवें पुरुष से प्राप्त हुई संतान उसके पति कि ही मानी जाएगी !!
क्या ये सही है ? आप लोगों से अपील है सत्यार्थ परकाश को ध्यान से पडें और विचार करे
सत्यार्थ प्रकाश समु.-4 के पृष्ठ- 96,97 पर महर्षि दयानन्द ने लिखा है
विधवा स्त्री का पुनः विवाह इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि पुनःविवाह से उसका पति व्रत धर्म नष्ट हो जाएगा। इसलिए नियोग करें।
महर्षि दयानन्द का नियोग नियम:>
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स्त्री यदि विधवा हो जाए तो उसको चाहिए कि वह किसी अन्य पुरूष से गर्भ धारण करले। वह सन्तान स्त्री के विवाहित पति की ही मानी जाएगी। उसी का गोत्र होगा। वीर्य दाता का नहीं।
गर्भ धारण (करने के) पश्चात् उस स्त्री व गैर पुरूष का कोई नाता न रहे बच्चों की परवरिश भी अकेली स्त्री स्वयं करें। वीर्य दाता बच्चों के पालन में कोई सहयोग न दे। अपने- अपने घर में रहें।
सत्यार्थ प्रकाश पेज 101 पर लिखा है
महिला अगर गर्भवती है तो पुरुष उस महिला के साथ 1 वर्ष तक सम्भोग न करे , अगर न रहा जाये ?
तो किसी विधवा स्त्री से “नियोग ” सम्भोग कर लेवे और संतान उत्पत्ति कर लेवे
सत्यार्थ प्रकाश समु.- 4 पृष्ठ-102 पर ही लिखा है
यदि किसी का पति मारता पीटता हो तो उस स्त्री को चाहिए कि वह किसी अन्य पुरूष के पास जाकर गर्भ धारण करले तथा सन्तान उत्पति करले।
वह गैर सन्तान भी विवाहित जीवित पति की मानी जाएगी। उसकी सम्पत्ति की भागीदार मानी जाएगी।
समु.-4 के पृष्ठ- 96,97 पर महर्षि दयानन्द ने लिखा है
विधवा स्त्री का पुनः विवाह इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि पुनःविवाह से उसका पति व्रत धर्म नष्ट हो जाएगा। इसलिए नियोग करें।
सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास-4 पृष्ठ-82पर लिखा है
नवजात बच्चे को माता केवल छः दिन दूध पिलाए फिर अपने स्तनों से दूध बन्द करने के लिए कोई पदार्थ लगाए।
बच्चे को दूध पिलाने के लिए ऐसी दाई रखो जिसके स्तनों में दूध हो वह उस नवजात बच्चे को अपना दूध पिलाए।
विचार करें यदि एक गांव में एक दिन तीन-चार स्त्रियों को बच्चा उत्पन्न हो जाऐं तो इतनी दाई कहां से
उपलब्ध होगी। एक दाई कोई मिल्क प्लांट नहीं है कि सर्व बच्चों को दूध पिला देगी या ये जरूरी नही
उसी समय सर्व दाईयाँ भी बच्चों को जन्म दें।
फिर दयानन्द के विधान अनुसार वे अपने बच्चों को पालेंगी या अन्य के बच्चों को ?
महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश के समु.-4 पृष्ठ-102
अपने अनुयाईयों की सुहागिन स्त्रियों को भी आदेश दिया है कि वे भी किसी गैर पुरूष से पशु तुल्य कर्म अर्थात् नियोग करें,
लेकिन निम्न परिस्थितियों में:- यदि किसी का पति धन कमाने विदेश गया हो और तीन वर्ष घर न आए
तो वह स्त्री किसी गैर पुरूष से गर्भधारण करके सन्तान उत्पति करले। वह सन्तान उसके जीवित विवाहित पति की ही मानी जाएगी।
समुल्लास-7 पृष्ठ-154पर लिखा है
परमात्मा निराकार है।
समुल्लास-7 पृष्ठ-155 तथा 163 पर लिखा है कि
परमात्मा साधक के पाप नाश नहीं कर सकता।
महर्षि दयानन्द का यह भी कहना है कि ‘‘सत्यार्थ प्रकाश’’ में वेदों का ज्ञान ही सरल करके लिखा है।
जबकि यजुर्वेद अध्याय-8 मंत्र 13 में छः बार लिखा है कि परमात्मा दान देने वाले अपने भक्त के घोर पाप
को भी नाश कर देता है। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि ‘‘सत्यार्थ प्रकाश’’ वेद विरूद्ध ज्ञान युक्त है अर्थात् “”झूठार्थ प्रकाश”” है।
पुस्तक ‘‘श्रीमद्दयानन्द
Prakash ka पेज 445…
Ye Pustak सार्वदेशिक आर्य
प्रतिनिधी सभा 3/5 महर्षि दयानन्द भवन नई
दिल्ली से प्रकाशित है।
इसमे लिखा है
महर्षि दयानंद का मल-मूत्र वस्त्रों में ही निकल जाता था। दयानन्द को अतिसार (दस्त) लगे हुए थे।
ठाकुर भूपाल सिंह के हाथों पर ही कई बार मल- मूत्र
निकल जाता था।
इस प्रकार महापीड़ा को भोगकर, भुगत कर, म्रत्यु को प्राप्त हुआ महर्षि दयानन्द।
धिक्कार है ऐसी भक्ति साधना को तथा महर्षि को जिससे भक्त के पाप कर्म का कष्ट समाप्त नहीं हुआ।
महर्षि दयानन्द की दुर्गति
पुस्तक दयानन्द चरित के प ष्ठ 216 तथा 217 Per dekhe.
‘‘दयानन्द चरित’’ नामक Pustak जिसके लेखक है
श्री देवेन्द्र नाथ मुखोपाध्याय जिन्होंने सन् 1897 में
(2000-103=1897) बंगला भाषा में लिखा था। इसका अनुवाद सन् 2000 में 103 वर्ष पश्चात् बाबू घासी राम एम.ए., एल.एल.बी. ने हिन्दी में किया। जिस पुस्तक के सम्पादक हैं। डा.(प्रो.) भवानी लाल भारतीय। इसमें प्र ष्ठ 216 में लेखक ने स्पष्ट किया
है
” आश्विन मास (आसौज महिने) की बदी एकादशी को महर्षि दयानन्द को ठण्ड लग गई थी। जिस कारण से शरीरअस्वस्थ था। इसलिए चौदह को रात्री में केवल दूधपीकर सोया। रात्री में उल्टियाँ लगी। फिर डाक्टरों का आना आरम्भ हुआ।
लेकिन दवाईयों से कोई लाभ नहीं मिला, पेट का दर्द बढ़ता चला गया। स्वांस लेना भी कठिन हो गया। इससे से स्पष्ट हुआ कि महर्षि दयानन्द की म त्यु कांच या
विष देने से नहीं हुई बल्कि ठण्ड लगने से हुई तथा पाप
बढ़ जाने के कारण से हुई। “
दूसरी पुस्तक श्रीमद्दयानन्द प्रकाश में आप पढ़ेंगे कि
यह व्यक्ति किस तरह दुर्गति को प्राप्त होकर मरा? जिसे पढ़कर कलेजा मुंह को आता है।
पुस्तक दयानन्द चरित के पेज 217 में आप स्वयं पढ़ें महर्षि दयानन्द की दुर्दशा।
….
यदि दयानंद महान योगी तथा साधक था तो फिर वो नकली महर्षि दयानंद 40 दिनोँ तक अपने वस्त्रोँ मेँ टट्टी पेशाब करके तड़प तड़प कर बुरी दुर्गति से क्योँ मरा था ? अपनी योग साधना से वो क्योँ अपने बुरे कर्मोँ के फलोँ को नष्ट नहीँ कर पाया ?
दयानंद के हिँसक समाजियो याद रखना जिस योग साधना से दयानंद तड़प तड़प कर मरा था यदि वही साधना उसके हिँसकसमाजियोँ ( दयानंद के चेले ) ने
की तो वही हाल होगा जो गुरु का हुआ ! समझदार को ईशारा काफी ।
दयानन्द की महाअज्ञानता
दयान्नद ने गायत्री मंत्र की नकल की है कही से उसको खुद भी नही मालूम गायत्री मंत्र क्या है.. चलो हम बता देते है…
जिसको आर्य समाज गायत्री मंत्र बोलता है वो कोई मंत्र नही है
बल्कि ” यजुर्वेद अध्याय 36 का श्लोक 3″ है जिसमे ओम् नही है ..
ओम इन लोगो ने अपने घर से लगाया है .. वेद ज्ञान दाता ने ओम नही लगाया है.. ओम को किसी के साथ लगाकर जाप करना वेद और गीता ज्ञान दाता के विधान को तोडना है…
विवेचन:- हिन्दुओं द्वारा नित्य जाप किए जाने वाले
गायत्री मंत्र का किसी को पता नहीं था कि यह गायत्री मन्त्र कहां से उद्घ त किया गया है।
महर्षि दयानन्द ने अपने द्वारा लिखी पुस्तक ‘‘सत्यार्थ प्रकाश’’ के समुल्लास-3 पेज-38 पर
(वैदिक यति मण्डल दयानन्द मठ दीनानगर से प्रकाशित तथा आचार्य प्रिन्टिंग प्रैस
दयानन्द मठ गोहाना मार्ग रोहतक से मुद्रित)
गायत्री मन्त्र का उल्लेख किया है, लिखा है
‘‘भूः भुवः स्वः’’ ये तीन वचन तैतरीय आरण्यक के हैं। मंत्र के शेष भाग के विषय में महर्षि दयानन्द मौन है। उन्हें यह नहीं पता कि यह कहां से लिया गया है।
इससे सिद्ध हुआ कि महर्षि दयानन्द को वेद ज्ञान नहीं था।
यदि वेद ज्ञान होता तो स्पष्ट कहता कि यह मंत्र जिसे
गायत्री मंत्र कहते हैं, यजुर्वेद अध्याय-36 का मंत्र
तीसरा है।
‘‘सत्यार्थ प्रकाश’’ की रचना सन् 1875में करके, समाज में पढ़ने के लिए प्रवेश कर दिया। उसके दो
वर्ष बाद वेदों का अनुवाद करना प्रारम्भ किया।
यजुर्वेद का अनुवाद जनवरी सन् 1877 में प्रारम्भ किया तथा नवम्बर 1882को छः वर्ष में पूरा किया।
यजुर्वेद अध्याय-36 के मंत्र 3 का अनुवाद महर्षि दयानन्द का अपना ज्ञान है तथा सत्यार्थ प्रकाश में इसे गायत्री मंत्र बनाकर अनुवाद लिखा है
यह महर्षि दयानन्द ने किसी की नकल करके लिखा है। इसलिए एक दूसरे से मेल नहीं करता।
जब महर्षि दयानन्द यजुर्वेद का अनुवाद कर रहा था। इसको यह भी याद नहीं था कि मैंने इस मंत्र का
अनुवाद सत्यार्थ प्रकाश में क्या किया है?
इससे सिद्ध है कि महर्षि दयानन्द का ‘‘सत्यार्थ प्रकाश’’ का ज्ञान वेद ज्ञान विरूद्ध है।
क्योंकि सत्यार्थ प्रकाश में लिखे गायत्री मंत्र के अंश का ज्ञान कराया है कहा है कि ये तीन वचन
(भूः भुवः स्वः) तैतरीय आरण्यक के हैं। यदि वेद ज्ञान होता तो लिखता कि यह मंत्र यजुर्वेद अध्याय-36 मंत्र-3 है
भँगेडी नशेडी दयानन्द
दयानंद जी भांग पीता था तथा सभी प्रकार के नशा भी करता था .. फिर भी उनके चेले उन्हेंसमाज सुधारक का तमगा देते रहते है .. दयानंद जी नशेडी था इसके ढेरो प्रमाण है
..
आर्यसमाज की ही पुस्तको में ढेरो अधिक प्रमाण देखने के आप जी जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी द्वारा लिखित इस “धरती पर अवतार” नामक pdf पुस्तक
का अध्ययन करे — इस पुस्तक में दयानन्द के अज्ञान
की विस्त्रत प्रमाणित जानकारी दे
रक्खी है |
पुस्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती का जीवन चरित्र के पेज 50
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यह फोटो कापी महर्षि दयानन्द के भक्तों द्वारा लिखे
गये ‘‘जीवन चरित्र’’ की है। जो पहले उर्दू भाषा में पं. लेखराम द्वारा लिखा गया था। उस उर्दू संस्करण
का हिन्दी में अनुवाद स्व. कविराज रघुनन्दन सिंह ‘निर्मल’ ने किया है।
इसमें स्पष्ट लिखा है कि महर्षि दयानन्द ने स्वयं अपने
द्वारा लिखी जीवनी में कहा है कि
मुझे भांग पीने का दोष लग गया। उसके प्रभाव से पूर्ण रूप से बेसुध हो जाता था और योग अभ्यास भी करता था।
विचार करें:- ऐब करने वाला व्यक्ति साधना कर सकता है? बेसुध व्यक्ति अभ्यास रत हो सकता है?
इस प्रकार का व्यक्ति था, यह महर्षि दयानन्द। जो सर्व बुराई करता था, लेकिन दावा करता था, समाज सुधार का
दयान्नद 3 साल के लिए Underground
महर्षि दयानन्द स्वतन्त्रता संग्राम में डर कर
तीन वर्ष लापता रहा:-
पुस्तक ‘नवजागरण के पुरोधा दयानन्द सरस्वती ‘ के पेज 38 की Per Dekhe….
नकली आर्यसमाजी (दयानंद के चेले ) अपनी छाती कूट कूट के बड़ी शान से कहते है कि महर्षि दया नन्द ने १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत बड़ा योगदान दिया था ! ये देखो इस नकली महर्षि की असलियत
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महर्षि दयानन्द स्वतन्त्रता संग्राम में डर कर
तीन वर्ष लापता रहा:-
महर्षि दयानन्द के भक्तों द्वारा वैदिक पुस्तकालय,
परोपकारिणी सभा, दयानन्दाश्रम, अजमेर
(राजस्थान) से प्रकाशित ’’ नवजागरण के
पुरोधा दयानन्द सरस्वती’’ में
स्पष्ट किया है कि
महर्षि दयानन्द मार्च 1857 तक तो गंगा नदी के साथ-2 घूमता रहा। जब मई 1857 में स्वतन्त्रता संग्राम की तैयारी चल रही थी, उसी समय लापता हो
गया। फिर तीन वर्ष तक उसका कहीं पता नहीं लगा। जून 1857 में स्वतन्त्रता संग्राम हुआ। उसके भय से छुप गया।
महर्षि की फोकट महिमा बनाई जाती रही कि स्वतन्त्रता संग्राम में महर्षि दयानन्द का बड़ा योगदान रहा।
विचार करें:- क्या खाक योगदान था स्वतंत्रता संग्राम में, उन दिनों भांग पीकर डर के मारे जंगलों में छुपा रहा और महर्षि दयानन्द के समर्थक कहते हैं कि परमात्मा की खोज में दयानन्द जंगलों, पहाड़ों, गुफाओं में गया।
विचार करें परमात्मा कोई गाय-भैंस थोड़े ही है, कि गुम हो गई और वह कहीं जंगल में खोजने गया था।
परमात्मा वेदों में वर्णित विधानुसार मिलता है और वेद ज्ञान महर्षि दयानन्द की बुद्धि से परे की बात थी। जिस कारण से अपना अज्ञान अनुभव जो वेद ज्ञान विरूद्ध है ‘‘सत्यार्थ प्रकाश’’ में भर दिया जो आप के समक्ष है।”
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