वेदों के तथाकथित ज्ञाता दयानंद निकले महामुर्ख
दयानंद महर्षि या फिर अव्वल दर्जे का महाअज्ञानी ??
पढने के पश्चात स्वयं निर्णय करें
दयानंद सत्यार्थ प्रकाश के एकादश समुल्लास में लिखते है कि
“नानक जी को ज्ञान नहीं था”
अब उन महापुरूष को तो नही ज्ञान था, लेकिन ये कैसा विद्वान है आपने अच्छे से पढा हैं । दुसरो का अपमान करने वाला , दुसरो को मुर्ख समझने वाला स्वयं कितना ज्ञानी है यह जानना जरूरी हो जाता है ।
आइए देखते है दयानन्द को कितना ज्ञान था उन्हीं के शब्दों में पढ़िए-
अ) सत्यार्थ प्रकाश के नवम समुल्लास में कोई प्रश्नकर्ता स्वामी जी से प्रश्न करता हैं कि –
“(प्रश्न) यह जो ऊपर को नीला और धूंधलापन दीखता है वह आकाश नीला दीखता है वा नहीं?
दयानंद का उत्तर
(उत्तर) नहीं।
(प्रश्न) तो वह क्या है?
दयानंद का उत्तर
(उत्तर) अलग-अलग पृथिवी, जल और अग्नि के त्रसरेणु दीखते हैं। उस में जो नीलता दीखती है वह अधिक जल जो कि वर्षता है सो वही नील; जो धूंधलापन दीखता है वह पृथिवी से धूली उड़कर वायु में घूमती है वह दीखती और उसी का प्रतिबिम्ब जल वा दर्प्पण में दीखता है; आकाश का कभी नहीं।”
समीक्षा – वाह रे मेरे भंगेडानंद क्या जबाव दिया है
आपके अनुसार आसमान का जो ये नीला रंग है वो आसमान में उपस्थित पानी की वजह से है जो वर्षता है सो वो नीला दिखता है ।
स्वामी जी आप मुर्ख है ये तो मैं जानता था पर इतने बड़े और अव्वल दर्जे वाले महामुर्ख होंगे ये नहीं सोचा था
क्योकि ऐसी बात तो कोई अव्वल दर्जे का महामुर्ख ही कह सकता है ।
अब यदि हम दयानंद की बात को ही मान कर चले तो कोई ये बताए कि अगर पानी की वजह से आसमान नीला दिखाता है तो फिर बादलों में तो लबालब पानी भरा होता है फिर वो काले सफेद क्यों दिखाई देते हैं ??
खेर जिस मुर्ख को इतना भी ज्ञात न हो कि पानी जो स्वयं रंगहीन होता है भला वो दूसरों में रंग परिवर्तन किस प्रकार कर सकता है
खेर ये तो थी मूर्खों की बात
अब आइए ये भी समझ लेते हैं कि आखिर आसमान का रंग नीला क्यों दिखाई देता है ।
सूर्य से आने वाली प्रकाश किरणें जो क्रमशः सात (लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी) रंगों वाली प्रकाश किरणों से मिलकर बनी होती हैं।
(प्रकाश विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में होता है। विभिन्न रंग के प्रकाश का तरंगदैर्ध्य भिन्न होता है। विभिन्न तरंगदैर्ध्य की विद्युत चुंबकीय तरंगों के आँखों पर पड़ने से रंगों की अनुभूति होती है। )
जब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो लम्बी तरंगदैर्ध्य वाली प्रकाश किरणें वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर ली जाती है जबकि छोटी तरंगदैर्ध्य वाली (जैसे नीले रंग की) प्रकाश किरणें वायुमंडल में उपस्थित गैसीय अणुओं, धुल कण इत्यादि से टकराकर परावर्तित हो जाती है और पृथ्वी के चारों ओर बिखर जाती है इसी कारण हमें आसमान नीला दिखाई देता है ।
और एक इस दयानंद को देख लो उसके हिसाब से आसमान का नीला रंग प्रकाश के परावर्तन के कारण नहीं बल्कि जल के कारण है ।
अब स्वयं सोचकर देखें जिस मुर्ख को इतना भी न ज्ञान हो कि जल का कोई रंग नहीं होता बल्कि जल रंगहीन होता है ।
क्या ऐसा अज्ञानी को वेदों का ज्ञाता हो सकता है ??
मेरे हिसाब से तो ऐसे मुर्ख को ऋषि क्या गधों की श्रेणी में रखना भी समस्त गधों का ही अपमान होगा ।
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ब) दयानंद की बुद्धि का एक नमूना और देखिए सत्यार्थ प्रकाश के अष्टम समुल्लास में कोई प्रश्नकर्ता स्वामी जी से प्रश्न करता हैं कि –
“(प्रश्न) सूर्य चन्द्र और तारे क्या वस्तु हैं और उनमें मनुष्यादि सृष्टि है वा नहीं?
अब इस पर दयानंद का उत्तर सुनिए –
दयानंद ने उत्तर दिया कि ये सब भूगोल लोक है और सूर्य, चन्द्रमा, तारे आदि जितने भी गोलीय पिण्ड, ग्रह आदि है उन सब पर मनुष्य आदि प्रजा रहती है ।”
ह ह ह… स्वामी जी आपको तो खगोलीय वैज्ञानिक होना चाहिए था क्या दिमाग पाया है सरकार बेकार में ही करोड़ों अरबों डॉलर सिर्फ ये जानने के लिए बेकार में खर्च कर देती है कि पडोसी ग्रह पर जीवन है कि नहीं और वही दूसरी ओर दयानंद ने सूर्य पर भी जीवन खोज लिया……
काश वैज्ञानिकों ने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ी होती तो उनके ना केवल करोड़ों अरबों डॉलर का धन बचता साथ ही कई वर्षों का समय भी बेकार के प्रयोग में नहीं खराब होता
कमाल है यार एक अज्ञानी दुसरे की समझ पर उंगली उठा रहा है अपनी गिरेबान में ना झांककर उल्टा अपने एकादश समुल्लास में कहते हैं कि नानक जी को ज्ञान नहीं था
अरे स्वामी जी तो यही बता दीजिए की आपको कौन सा ज्ञान था किसी का अपमान करने से पहले स्वयं को ही देख लेते।
किसी ने सत्य ही कहा है एक मुर्ख को सारी दुनिया मुर्ख ही लगती है
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