• संत रामपाल जी महाराज का संक्षिप्त परिचय
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितम्बर 1951 को गांव धनाना जिला सोनीपत, हरियाणा में एक किसान परिवार में हुआ। पढ़ाई पूरी करके हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजिनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। सन् 1988 में परम संत रामदेवानंद जी से दीक्षा प्राप्त की तथा तन-मन से सक्रिय होकर स्वामी रामदेवानंद जी द्वारा बताए भक्ति मार्ग से साधना की तथा परमात्मा का साक्षात्कार किया।
भक्ति मार्ग में लीन होने के कारण जे.ई. की पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया जो हरियाणा सरकार द्वारा 16.5.2000 को पत्र क्रमांक 3492-3500, तिथि 16.5.2000 के तहत स्वीकृत है।
सन् 1994 से 1998 तक संत रामपाल जी महाराज ने घर-घर, गांव-गांव, नगर-नगर में जाकर सत्संग किया। बहु संख्या में अनुयाई हो गये। साथ-साथ ज्ञानहीन संतों का विरोध भी बढ़ता गया। सन् 1999 में गांव करौंथा जिला रोहतक (हरियाणा) में सतलोक आश्रम करौंथा की स्थापना की तथा एक जून 1999 से 7 जून 1999 तक परमेश्वर कबीर जी के प्रकट दिवस पर सात दिवसीय विशाल सत्संग का आयोजन करके आश्रम का प्रारम्भ किया तथा महीने की प्रत्येक पूर्णिमा को तीन दिन का सत्संग प्रारम्भ किया।
दूर-दूर से श्रद्धालु सत्संग सुनने आने लगे तथा तत्वज्ञान को समझकर बहुसंख्या में अनुयाई बनने लगे। चंद दिनों में संत रामपाल महाराज जी के अनुयाइयों की संख्या लाखों में पहुंच गई। जिन ज्ञानहीन संतों व ऋषियों के अनुयाई संत रामपाल जी के पास आने लगे तथा अनुयाई बनने लगे फिर उन अज्ञानी आचार्यों तथा सन्तों से प्रश्न करने लगे कि आप सर्व ज्ञान अपने सद्ग्रंथों के विपरीत बता रहे हो।
राई से पर्वत करे, पर्वत से फिर राई।।
संत रामपाल जी महाराज को ई.सं. (सन्) 2001 में अक्तुबर महीने के प्रथम बृहस्पतिवार को अचानक प्रेरणा हुई कि ”सर्व धर्मां के सद्ग्रन्थों का गहराई से अध्ययन कर” इस आधार पर सर्वप्रथम पवित्र श्रीमद् भगवद्गीता जी का अध्ययन किया तथा पुस्तक ‘गहरी नजर गीता में‘ की रचना की तथा उसी आधार पर सर्वप्रथम राजस्थान प्रांत के जोधपुर शहर में मार्च 2002 में सत्संग प्रारंभ किया। इसलिए नास्त्रोदमस जी ने कहा है कि विश्व धार्मिक हिन्दू संत (शायरन) पचास वर्ष की आयु में अर्थात् 2001 ज्ञेय ज्ञाता होकर प्रचार करेगा।
संत रामपाल जी महाराज का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में सन् (ई.सं.) 1951 में 8 सितम्बर को गांव धनाना जिला सोनीपत, प्रांत हरियाणा (भारत) में एक किसान परिवार में हुआ। इस प्रकार सन् 2001 में संत रामपाल जी महाराज की आयु पचास वर्ष बनती है, सो नास्त्रोदमस के अनुसार खरी है।
इसलिए वह विश्व धार्मिक नेता संत रामपाल जी महाराज ही हैं जिनकी अध्यक्षता में भारतवर्ष पूरे विश्व पर राज्य करेगा। पूरे विश्व में एक ही ज्ञान (भक्ति मार्ग) चलेगा। एक ही कानून होगा, कोई दुःखी नहीं रहेगा, विश्व में पूर्ण शांति होगी। जो विरोध करेंगे अंत में वे भी पश्चाताप करेंगे तथा तत्वज्ञान को स्वीकार करने पर विवश होंगे और सर्व मानव समाज मानव धर्म का पालन करेगा और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करके सतलोक जाएंगे।
उसी के विषय में परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी ने अपनी अमृत वाणी में पवित्र ‘कबीर सागर‘ ग्रंथ में (जो संत धर्मदास जी द्वारा लगभग 550 वर्ष पूर्व लीपीबद्ध किया गया है) कहा है कि एक समय आएगा जब पूरे विश्व में मेरा ही ज्ञान चलेगा। पूरा विश्व शांति पूर्वक भक्ति करेगा। आपस में विशेष प्रेम होगा, सतयुग जैसा समय (स्वर्ण युग) होगा। परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ द्वारा बताए ज्ञान को संत रामपाल जी महाराज ने समझा है। इसी ज्ञान के विषय में कबीर साहेब जी ने अपनी वाणी में कहा है कि —
जैसे गोला तोब का, करता चले मैदान।।
सूती धरणी सूम जगायसी”
दिल्ली मण्डल लीजै वासा”
यह भविष्यवाणी श्री नास्त्रोदमस जी ने भी की है। नास्त्रोदमस जी ने यह भी लिखा है कि मुझे दुःख इस बात का है कि उससे परिचित न होने के कारण मेरा शायरन (तत्वदृष्टा संत) उपेक्षा का पात्र बना है। हे बुद्धिमान मानव ! उसकी उपेक्षा ना करो। वह तो सिंहासनस्थ करके (आसन पर बैठा कर) अराध्य देव (इष्टदेव) रूप में मान करने योग्य है। वह हिन्दू धार्मिक संत शायरन आदि पुरुष (पूर्ण परमात्मा) का अनुयाई जगत् का तारणहार है।
यहां पर उपदेश मंत्र की ओर संकेत है कि वह शायरन केवल तीन शब्द (ओम्-तत्-सत्) ही मंत्र जाप देगा। इन तीन शब्दों के साथ मुक्ति का कोई अन्य शब्द न चिपकाएगा।
यही प्रमाण पवित्र ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 90 मंत्र 16 में, सामवेद श्लोक संख्या 822 तथा श्रीमद् भगवत् गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में है कि पूर्ण संत (तत्वदर्शी संत) तीन मंत्र (ओम्-तत्-सत् जिनमें तत् तथा सत् सांकेतिक हैं) दे कर पूर्ण परमात्मा (आदि पुरुष) की भक्ति करवा कर जीव को काल-जाल से मुक्त करवाता है। फिर वह साधक की भक्ति कमाई के बल से वहां चला जाता है जहां आदि सृष्टी के अच्छे प्राणी रहते हैं। जहां से यह जीव अपने पूर्वजों को छोड़ कर क्रुरचन्द्र (काल प्रभु) के साथ आकर इस दुःखदाई लोक में फंस कर कष्ट पर कष्ट उठा रहा है।
नास्त्रोदमस जी ने यह भी स्पष्ट किया है कि मध्य काल अर्थात् बिचली पीढ़ी हिन्दू धर्म का आदर्श जीवन जीएंगे। शायरन (तत्वदृष्टा संत) अपने ज्ञान से दैदिप्यमान उतंग ऊँचा स्वरूप अर्थात् सर्व श्रेष्ठ शास्त्रानुकूल भक्ति विधान फिर से बिना शर्त उजागर करवाएगा ओर मानवी संस्कृति अर्थात् मानव धर्म के लक्षण निर्धोक (निष्कपट भाव से) संवारेगा।
(मधल्या कालात हिन्दू धर्मांचे व हिन्दुच्या आदर्शवत् झालेल – यह मराठी भाषा में पृष्ठ 42 पर लिखा है कि उपरोक्त भावार्थ है कि बिचली पीढ़ी का उद्धार शायरन करेगा। यह उल्लेख पृष्ठ 42 की हिन्दी लिखना रह गया था इसलिए यहां लिख दिया है तथा स्पष्टीकरण भी दिया है। यही प्रमाण स्वयं पूर्ण परमात्मा कबीर जी ने कहा है कि
धर्मदास तोहे लाख दुहाई,
सारज्ञान व सारशब्द कहीं बाहर न जाई।
सारनाम बाहर जो परही,
बिचली पीढ़ी हंस नहीं तर ही।।
सारज्ञान तब तक छुपाई,
जब तक द्वादस पंथ न मिट जाई)।
सन् 1947 से पहले कलियुग की प्रथम पीढ़ी जानें तथा 1947 से बिचली पीढ़ी प्रारम्भ हुई है। यह एक हजार वर्ष तक सत्य भक्ति करेगी। इस दौरान जो पूर्ण निश्चय के साथ भक्ति करेगा वह सतलोक चला जाएगा। जो सतलोक नहीं जा सके तथा कभी भक्ति की, कभी छोड़ दी, परंतु गुरु द्रोही नहीं हुए वे फिर हजारों मनुष्य जन्म इसी कलियुग में प्राप्त करेंगे क्योंकि यह उनकी शास्त्राविधि अनुसार साधना का परिणाम होगा।
इस प्रकार कई हजारों वर्षों तक कलियुग का समय वर्तमान से भी अच्छा चलेगा। फिर अंत की पीढ़ी भक्ति रहित उत्पन्न होगी क्योंकि शुभ कमाई जो भक्ति युग में की है वह बार-2 जन्म प्राप्त करके खर्च (समाप्त) कर दी होगी। इस प्रकार कलियुग के अंत की पीढ़ी कृतघनी होगी। वे भक्ति नहीं कर सकेंगी। इसलिए कहा है कि अब कलियुग की बिचली पीढ़ी चल रही है (1947 से)। सन् 2006 से वह शायरन सर्व के समक्ष प्रकट हो चुका है, वह है ”संत रामपाल जी महाराज“।
बहुर नहीं रे ऐसा दाव।।
कहंदा श्याम दुपहरे नूं।
गरीबदास यह वक्त जात है,
रोवोगे इस पहरे नूं।।
परमेश्वर कबीर जी बन्दी छोड़ ने कहा है कि –
अब पछतावा क्या करे, जब चिडि़या चुग गई खेत।।
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