2D Animation Video | कबीर परमेश्वर जी की लीलाएँ | धर्मदास जी को सतलोक का दर्शन और सत्य ज्ञान | Complete Spiritual Journey

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श्री धर्मदास जी और कबीर परमेश्वर जी की लीला: सत्य भक्ति की ओर एक प्रेरणादायक यात्रा

श्री धर्मदास जी, जिनका जन्म 1395 विक्रमी संवत (1452 ईस्वी) को छत्तीसगढ़ के बांधवगढ़ नगर में एक धनी वैश्य परिवार में हुआ था, परमात्मा कबीर साहिब जी की कृपा से एक अनमोल अध्यात्मिक यात्रा का अनुभव करने वाले महान भक्त थे। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ थी कि जब कभी बांधवगढ़ में प्राकृतिक आपदाएं जैसे अकाल, बाढ़ आदि आती थीं, तो वहां के नवाब भी धर्मदास जी के पूर्वजों से वित्तीय सहायता प्राप्त करते थे। बावजूद इसके, उनकी बचपन से ही भगवान में गहरी श्रद्धा थी और वे हिंदू धर्म में प्रचलित सभी पूजा पद्धतियों का पालन करते थे। श्री धर्मदास जी ने श्री रूपदास जी नामक एक वैष्णव संत से दीक्षा प्राप्त की थी और उनकी शिक्षाओं के अनुसार नित्य गीता पाठ, शालिग्राम पूजा, एकादशी का व्रत और श्राद्ध इत्यादि का पालन करते थे।

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धर्म यात्रा की शुरुआत और परमात्मा से भेंट

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धर्मदास जी ने वृद्धावस्था में अपनी पत्नी आमनी जी से तीर्थ यात्रा पर जाने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि “स्वामी गुरुदेव ने कहा है कि मुक्ति पाने के लिए 68 तीर्थों की यात्रा जरूर करनी चाहिए, इसलिए मैं कल तीर्थ यात्रा पर निकल रहा हूं।” आमनी जी ने उनके जाने की तैयारी कर दी।

मथुरा में तीर्थों की यात्रा करते हुए, धर्मदास जी एक सुबह गोवर्धन पर्वत के पास स्थित एक सरोवर के किनारे पहुंचे। सरोवर का पानी बहुत गंदा था, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, उसमें स्नान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती थी, इसलिए धर्मदास जी ने उसमें स्नान किया और फिर ठाकुर जी की पूजा करने लगे। तभी, सर्व सृष्टि के रचनहार कबीर देव जी ने काशी से प्रकट होकर एक मुसलमान जिंदा महात्मा का रूप धारण किया और धर्मदास जी से थोड़ी दूरी पर आकर बैठ गए। धर्मदास जी गीता जी का ऊँचे स्वर में पाठ करने लगे, लेकिन मुसलमान जिंदा महात्मा को हिंदू धर्म की साधना में रुचि लेते देख, उन्होंने और अधिक पाठ किया।

कबीर परमात्मा के साथ संवाद

जब धर्मदास जी गीता पाठ समाप्त कर चुके थे, तो कबीर परमात्मा ने उनसे कहा, “हे महात्मा जी, आपका ज्ञान तो बहुत ही अच्छा है। आप कौन हैं? पहले तो आपको यहां कभी नहीं देखा।” धर्मदास जी ने अपना परिचय दिया और बताया कि वे बांधवगढ़ के रहने वाले हैं और वैश्य कुल में जन्मे हैं। कबीर परमात्मा ने अपनी जिज्ञासा व्यक्त करते हुए कहा कि वे परमात्मा की खोज में हैं और धर्मदास जी से दीक्षा लेना चाहते हैं। धर्मदास जी ने उन्हें अपने गुरु श्री रूपदास जी के उपदेश सुनाए और बताया कि किस प्रकार हरे राम, हरे कृष्ण का जाप, एकादशी का व्रत, शालिग्राम पूजा, और तीर्थ यात्रा करने से मुक्ति मिलती है।

कबीर परमात्मा ने धर्मदास जी से सवाल किया कि गीता जी का ज्ञान किसने लिखा है। धर्मदास जी ने बताया कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने बोला है। कबीर परमात्मा ने पूछा कि क्या गीता में कहीं लिखा है कि हरे राम, हरे कृष्ण का जाप करना चाहिए? इस पर धर्मदास जी ने उत्तर दिया कि गीता में ऐसा कहीं नहीं लिखा। कबीर परमात्मा ने और भी कई सवाल उठाए, जैसे कि जीव हिंसा और व्रत के बारे में, जिनका उत्तर धर्मदास जी ठीक से नहीं दे पाए।

धर्मदास जी की आत्मा का परिवर्तन

कबीर परमात्मा ने धर्मदास जी को यह बताया कि वह साधना जो वे कर रहे हैं, वह गीता शास्त्र के अनुसार नहीं है और अंत में धर्मदास जी ने स्वीकार किया कि उन्होंने अपने धर्म का परिचय दे ही दिया और यह भी स्वीकार किया कि वे एक मुसलमान हैं और इसलिए हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे हैं। लेकिन जब कबीर परमात्मा अचानक गायब हो गए, तो धर्मदास जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे भगवान से प्रार्थना करने लगे कि अगर फिर से वही संत मिल जाएं, तो वे अपना हट छोड़कर संपूर्ण ज्ञान समझेंगे।

धर्मदास जी का मन अब किसी भी कर्मकांड में नहीं लग रहा था, और वे भगवान का प्रसाद बनाते हुए सोचने लगे कि कैसे उन महापुरुष को खोजा जाए। अचानक उन्हें एक साधु महात्मा मिलते हैं, जो वही ज्ञान बता रहे थे, जो पहले वाले महात्मा ने बताया था। धर्मदास जी को यह समझ में आता है कि यह महात्मा कोई सामान्य संत नहीं हैं, और वे उनसे ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

पूर्ण परमात्मा का सत्य ज्ञान

कबीर परमात्मा ने धर्मदास जी को सृष्टि रचना का सत्य ज्ञान बताया और समझाया कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश केवल तीन लोकों के स्वामी हैं और उनसे ऊपर भी एक परमेश्वर है, जिसे गीता में परम अक्षर ब्रह्म कहा गया है। उन्होंने धर्मदास जी को यह भी बताया कि गीता के अनुसार व्रत रखना, पितृ पूजा करना, और तीर्थ यात्रा करना व्यर्थ है। धर्मदास जी ने यह सुनकर कबीर परमात्मा से कहा कि वे अपने गुरु रूपदास जी से यह सब पूछेंगे और सत्य का पता लगाएंगे।

जब धर्मदास जी ने अपने गुरु से यह सब सवाल किए, तो उनके गुरु ने उन्हें बताया कि जो ज्ञान उनके पास था, वह उन्होंने धर्मदास जी को बता दिया है, लेकिन उससे आगे का उन्हें कोई ज्ञान नहीं है। गुरु रूपदास जी ने यह भी कहा कि जो महात्मा धर्मदास जी को मिले हैं, वे अवश्य ही कोई पहुंचे हुए महापुरुष हैं।

धर्मदास जी की भक्ति और मुक्ति

इसके बाद धर्मदास जी ने परमात्मा कबीर साहिब जी को अपना गुरु माना और उनसे नाम दीक्षा प्राप्त की। परमात्मा ने धर्मदास जी को सतलोक का दर्शन कराया, जहां उन्होंने अद्भुत दृश्य देखे और पूर्ण ब्रह्म के तेजोमय स्वरूप को देखा। धर्मदास जी ने पूर्ण विश्वास के साथ भक्ति करना शुरू किया और अपने जीवन को सफल बनाया। धर्मदास जी के वंश में एक पुत्र चूड़ामणि का जन्म हुआ, जो उनके 42 पीढ़ी तक चलने वाले वंश का आधार बनेगा।

परमात्मा कबीर जी ने धर्मदास जी को यह भी बताया कि कलयुग के 5505 वर्ष बाद, जब उनके वंशज सत्य भक्ति को छोड़ देंगे, तब एक महापुरुष प्रकट होंगे, जो उनके वंशजों और संसार के अन्य लोगों का उद्धार करेंगे। वर्तमान में, वही परमात्मा कबीर जी बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज के रूप में अवतरित हुए हैं, जो सर्व समाज को सत भक्ति प्रदान कर रहे हैं और जिनसे नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने से सर्व सुख व पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है।

निष्कर्ष:

श्री धर्मदास जी की यह कथा एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि सच्चे गुरु के मार्गदर्शन में ही वास्तविक मोक्ष की प्राप्ति संभव है। परमात्मा कबीर साहिब जी ने धर्मदास जी को सच्ची भक्ति का मार्ग दिखाया और उन्हें संसार के मोह माया से मुक्त कर सतलोक का दर्शन कराया। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि धर्म की सच्ची समझ और पूर्ण गुरु का महत्व कितना बड़ा होता है।

सत साहिब जी

ये अनमोल ज्ञान जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सत्संग का अंश मात्र है। संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान के लिए संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचनों का अध्ययन करें।

कबीर परमेश्वर जी ने श्री धर्मदास जी को किस प्रकार सतभक्ति की ओर प्रेरित किया?

कबीर परमेश्वर जी ने श्री धर्मदास जी को सृष्टि रचना का सत्य ज्ञान देकर और उनसे जीव हिंसा और कर्मकांड की व्यर्थता पर सवाल करके उन्हें सतभक्ति की ओर प्रेरित किया।

धर्मदास जी का जन्म कब और कहां हुआ?

धर्मदास जी का जन्म 1395 विक्रमी संवत (1452 ईस्वी) को छत्तीसगढ़ के बांधवगढ़ नगर में हुआ था।

श्री धर्मदास जी ने किन साधना पद्धतियों का पालन किया?

श्री धर्मदास जी ने अपने गुरु श्री रूपदास जी के निर्देशानुसार गीता पाठ, शालिग्राम पूजा, एकादशी व्रत, और श्राद्ध आदि साधना पद्धतियों का पालन किया।

कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को किस ज्ञान का उपदेश दिया?

कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को सृष्टि रचना, ब्रह्मा, विष्णु, महेश की सीमाओं, और सत्य भक्ति के महत्व का ज्ञान दिया।

धर्मदास जी की तीर्थ यात्रा का उद्देश्य क्या था?

धर्मदास जी की तीर्थ यात्रा का उद्देश्य 68 तीर्थों की यात्रा कर मुक्ति प्राप्त करना था, जैसा कि उनके गुरु ने उन्हें बताया था।

कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को कौन से पवित्र स्थान का दर्शन कराया?

कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को सतलोक का दर्शन कराया, जो परमात्मा का वास्तविक घर है।

धर्मदास जी ने कबीर परमात्मा को कैसे पहचाना?

धर्मदास जी ने कबीर परमात्मा को उनके ज्ञान, दया, और सतलोक के दर्शन के माध्यम से पहचाना और उन्हें अपना गुरु स्वीकार किया।

धर्मदास जी को कबीर परमेश्वर जी ने क्या सलाह दी?

कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को सत्य भक्ति का पालन करने और काल के जाल में फंसे जीवों को मुक्त करने की सलाह दी।

धर्मदास जी की सबसे बड़ी शंका क्या थी?

धर्मदास जी की सबसे बड़ी शंका यह थी कि क्या ब्रह्मा, विष्णु, महेश के माता-पिता हैं और क्या उनसे भी बड़ा कोई परमात्मा है।

धर्मदास जी के वंश का क्या हुआ?

कबीर परमेश्वर जी के आशीर्वाद से धर्मदास जी का वंश 42 पीढ़ियों तक चला, और उनके वंशज सत्य भक्ति के पथ पर चलते रहे।

Banti Kumar
WRITTEN BY

Banti Kumar

📽️Video 📷Photo Editor | ✍️Blogger | ▶️Youtuber | 💡Creator | 🖌️Animator | 🎨Logo Designer | Proud Indian

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