दयानंद पैदाइशी महामुर्ख
दयानंद यजुर्वेद ३०/२१ का भाष्य करते हुए लिखते हैं –
अग्नये पीवानं पृथिव्यै पीठसर्पिणं वायवे चाण्डालम् अन्तरिक्षाय वम्ँ शनर्तिनं दिवे खलतिम्ँ सूर्याय हर्यक्षं नक्षत्रेभ्यः किर्मिरं चन्द्रमसे किलासम् अह्ने शुक्लं पिङ्गाक्षम्ँ रात्र्यै कृष्णं पिङ्गाक्षम् ॥ (यजुर्वेद ३०/२१)
हे परमेश्वर वा राजन् !आप …./ (पिङ्गलम्)- पीली आँखोवाले को उत्पन्न कीजिये, ……./ (चाण्डालम्)- भंगी को, (खलतिम्)- गंजे को, ……/ (कृष्णम्)- काले रंगवाले, (पिङ्गाक्षम्))- पीले नेत्रों से युक्त पुरूष को दूर कीजिये,
भावार्थ करते हुए लिखते हैं कि- भंगी के शरीर में आया वायु दुर्गंधयुक्त होने से सेवन योग्य नहीं इसलिए उसे दूर करें
समीक्षा- दयानंद का ये भाष्य पढ़कर इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि दयानंद पैदाइशी मुर्ख है, दयानंद का ये भाष्य इस बात की पुष्टि करता है ।
पाठकगण ! ध्यान करें दयानंद पहले तो स्वयं लिखते हैं कि “हे परमेश्वर वा राजन् !आप …./ (पिङ्गलम्)- पीली आँखोवाले को उत्पन्न कीजिये, फिर उसी पदार्थ के अंत में ऊपर लिखी बात के विरुद्ध लिखते है कि,
(पिङ्गाक्षम्))- पीले नेत्रों से युक्त पुरूष को दूर कीजिये,
अब पाठकगण ! स्वयं विचार करके बताए कि एक ही मंत्र में दो परस्पर विरुद्ध बातें लिखना, क्या दयानंद की बुद्धि पर प्रश्न चिह्न नहीं लगाता ?
दयानंद के भाष्यानुसार ईश्वर को क्या करना चाहिए, पिले नेत्रों वाले मनुष्यों को उत्पन्न करना चाहिए या नहीं,
उसी भाष्य में दयानंद लिखते हैं कि – (चाण्डालम्)- भंगी को, (खलतिम्)- गंजे को, ……/ (कृष्णम्)- काले रंगवाले, (पिङ्गाक्षम्))- पीले नेत्रों से युक्त पुरूष को दूर कीजिये,
पाठकगण ! स्वयं विचार करें भला ईश्वर भंगी, काले रंगवाले, और पीले नेत्रों वाले मनुष्यों को दूर क्यों करें ?,
क्या ये मनुष्य, मनुष्य की औलाद नहीं या इनकी सृष्टि ईश्वर द्वारा नहीं की गई, भला ईश्वर ऐसा क्यों करने लगे ?, जिन्हें स्वयं ईश्वर ने उत्पन्न किया वो उन्हें दूर क्यों करेंगे ?
हाँ दयानंद जरूर ऐसा सोचते होंगे शायद उन्हें ऐसे पुरुष अच्छे नहीं लगते हो जिसे उन्होंने अपने वेदभाष्यों में लिखकर, अपने मन में भरी घृणा को जगजाहिर किया, और लिखा कि “भंगी के शरीर में आया वायु दुर्गंधयुक्त होने से सेवन योग्य नहीं इसलिए उसे दूर भगावें”
दयानंदी हमें ये बताए कि यदि दयानंद के इस भावार्थानुसार लोग भंगी को सिर्फ इसलिए दूर कर दें क्योंकि उसके शरीर से दुर्गंधयुक्त वायु आती है
तो क्या उसके बदले भंगी का काम करने दयानंद का बाप आएगा ?,
दरअसल ये दयानंद के भंग की तरंग है भंग के नशे में मुहँ में जो अंड संड आया सो बक दिया, जो मन में आया सो लिख दिया, ऐसे भंगेडी के बातों का क्या प्रमाण ?,
जिन नवीन-आर्यसमाजियों का उद्देश्य सनातन धर्म ग्रंथों के उदाहरणों को गलत-संदर्भ में प्रस्तुत करते हुए- सनातनधर्मियों को अपमानित करना व उन्हें नीचा दिखाना, धर्म विरोधीयों की सहायता करना आदि हैं, उनके लिए सप्रेम ————–
दयानंद यजु:भाष्य:-
पूषणम् ………… पायुना कृश्माच्छपिंण्डै: ,
स्वामी दयानंद इस मंत्र का अर्थ करते हुए लिखते हैं —
“हे मनुष्यों, तुम मांगने से पुष्टि करने वालों को स्थूल गुदेंद्रियों के साथ वर्तमान, अंधे सर्पों को गुदेंद्रियों के साथ वर्तमान विशेष कुटिल सर्पों को आंतों से, जलों को नाभि के नीचे के भाग से, अंडकोष को आंडों से, घोडे के लिंग और वीर्य से संतान को, पित्त से भोजनों को, पेट के अंगो को गुदेंद्रिय और शक्तियों से शिखावटों को निरंतर लेओं “
प्रश्न १• नवीन-आर्यसमाजियों को स्वामी जी द्वारा किए गए कई मंत्रो के ऐसे अर्थ अश्लील क्यों नहीं लगते ? और यदि यही शब्द या ऐसे अर्थ इन्हें अन्य सनातनी धर्म ग्रथों मे दिख जाते हैं तो ये सनातनधर्मियों और उनके शास्त्रकारों को — धूर्त, निशाचर, पाखंडी, नीच और न जाने कितनी गालियाँ देते हैं .
नवीन आर्य समाजी हमें बस ये बताए कि दयानंद के इन भाष्यों के बारे में उनकी क्या राय है ??
प्रश्न २• नवीन आर्यसमाजी बताए कि अंधे सर्पों को गुदा में घुसाने और कुटिल सर्पों को आंतों से लेने की आज्ञा क्या ईश्वर ने दी हैं ?
यदि दी है तो समाजी दिन में ये कितनी बार लेते हैं ?
प्रश्न ३• नवीन आर्य समाजी अंधे कुटिल सर्पों और अश्व के लिंग को गुदा व आंतों में निरंतर लेते रहने के पीछे का विज्ञान समझाए .
प्रश्न ४• गुदा व आंतों में अंधे और कुटिल सर्पों एवं अश्व के लिंग को निरंतर लेते रहने की विशेष युक्ति (तरकीब) का खुलासा करें । क्योकि नवीन आर्यसमाजियों के सर्पों के साथ इस कृत्य की कल्पना करके भी , हमारी समझ से तो बाहर हैं कि सर्पों को ये किस युक्ति से प्रवेश देते होंगें ?
प्रश्न ५• सर्पों को गुदेंद्रिय में लेने की आवश्यकता क्या हैं ? गुदेंद्रिय आनंद ही अगर अपेक्षित हैं, तो सर्प के समान आकार वाली अन्य वस्तुओं का विकल्प भी तो है न आपके लिए ? और यदि लेते समय साँप घबराकर आपको अंदर या बाहर से काट लें, तो वैद्य के पास जाकर क्या कहोगें अभागों ?,
प्रश्न ६• और अंधा सर्प ही क्यो ? आँख वाले सर्पों से क्या गुदेंद्रियों को नजर लगने का भय हैं ??
प्रश्न ७• अर्थ मे आता हैं कि – “अंडकोष को आंडों से निरंतर लेओं ” अब नवीन आर्यसमाजी पहले तो अंडकोष और आंडों के बीच का अंतर बताए, और फिर ये बताए कि अंडकोष से आडों को किस प्रकार लिया जा सकता हैं ?
अब कोई अनार्य समाजी ये न कहें कि इसका मतलब ये नहीं है, वो नहीं हैं, फलाना हैं, तो ढिमाका हैं … क्योकि यही बात जब हम आप लोगों को समझाते हैं तो बुद्धि और विवेक को एक तरफ रखकर आप लोग केवल शब्दों को ही पकड़ के बैठे रहते हो.
तो मेरे नवीन समाजी भाईयों आगे बढ़ें और दयानंद की थुत पर चार जूते 👞 मारकर दयानंद द्वारा किए गए इन अश्लील भाष्यों का विरोध करें ।
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