दयानंदभाष्य खंडनम् (महाधुर्त दयानंद)
जब लाखों करोड़ों धुर्त मरते है तब कहीं जाकर एक महाधुर्त पैदा होता है ।
भारत के इतिहास में आज तक इतना बड़ा धुर्त किसी ने नहीं देखा दयानंद ने मेक्समूलर के भाष्य को Copy कर जैसे तैसे हिन्दी मे अनुवाद तो कर दिया पर अपनी मूर्खता को छिपा न सके
यजुर्वेद १६/१ में दयानंद लिखते है
नमस्ते रूद्र मन्यव उतो त इषवे नमः।
बाहुभ्यामुत ते नमः॥ (यजुर्वेद १६/९)
हे (रूद्र)- दुष्ट शत्रुओं को रूलाने हारे राजन्, (ते)- तेरे, (मन्यवे)- क्रोधयुक्त वीरपुरूष के लिये, (नम:)- वज्र प्राप्त हो, (उतो)- और, (इषवे)- शत्रुओं को मारने हारे, (ते)- तेरे लिये, (नम:)- अन्न प्राप्त हो, (उत)- और (ते)- तेरे, (बाहुभ्याम्)- भुजाओं से, (नम:)- वज्र शत्रुओं को प्राप्त हो ।
भावार्थ – जो राज्य किया चाहे, वे हाथ पांव का बल युद्ध की शिक्षा तथा शस्त्र और अस्त्रों का संग्रह करें ॥१॥
समीक्षा – दयानंद का ये भावार्थ केवल वही समझ सकता है जो वर्षों तक पागलख़ाने में रहकर आया हो
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इस दयानन्द ने किस प्रकार अर्थ का अनर्थ किया है वो आपके सामने है अन्य शब्दों का तो छोडिए एक सामान्य सा शब्द ( नम: ) तीन बार लिखा और तीनों का अर्थ ऐसा लिखा जैसा कोई मूर्ख भी नही करता ।
(नम:)- वज्र प्राप्त हो,
(नम:)- अन्न प्राप्त हो,
(नम:)- वज्र शत्रुओं को प्राप्त हो,
ये है आर्य समाजीयो के महर्षि ।
प्रथम तो आर्य समाजी ये बताए कि वेद ईश्वर की स्तुति करता है या फिर राजा की जैसा कि इस धूर्त ने लिखा है
हे (रूद्र)- दुष्ट शत्रुओं को रूलाने हारे राजन्, आश्चर्य की बात है कि इस धुर्त ने इस मंत्र से ईश्वर को ही गायब कर दिया ईश्वर के स्थान पर राजा की स्तुति करने लगा
चलिए अब एक नजर इसके सही अर्थ भी डाल लेते हैं
नमस्ते रूद्र मन्यव उतो त इषवे नमः।
बाहुभ्यामुत ते नमः॥ (यजुर्वेद- १६/९)
हे (रूद्र)- {दुष्टों को उनके द्वारा किए गए दुष्टता का फल भोगाकर रूलाने वाले} रूद्रदेव, (ते)- आपके, (मन्यवे)- अनिति दमन के लिए क्रोध के प्रति, (नम:)- हमारा नमस्कार है, (उतो)- और, (इषवे)- दुष्टों का नाश करने वाले के प्रति (नम:)- हमारा नमस्कार है, (ते)- आपके, (बाहुभ्याम्)- विराट भुजाओं के प्रति, (नम:)- हमारा नमस्कार है ।
भावार्थ :- हे (दुष्टों को उनके द्वारा किये गए दुष्टता का फल भोगाकर रूलाने वाले) रूद्रदेव आपके मन्यु (अनिति दमन के लिए क्रोध के प्रति) हमारा नमस्कार है दुष्टों का नाश करने वाले के लिए हमारा नमस्कार है। आपकी विराट भुजाओं के लिए हमारा नमस्कार है ॥१॥
मुझे समझ नही आता कि दयानंद वेदभाष्य लिख रहे थे या लोगों पर अपना मत थोपने का प्रयास कर रहे थे
हद है यार कैसे कैसे चुतिया महर्षि बन जाते है ऐसे धूर्तों से तो ईश्वर ही बचायेV