पार किन्हें नहीं पाये संतौं, पार किन्हें नहीं पाये।
जुग छतीस रीति नहीं जानी, ब्रह्मा कमल भुलाये।।टेक।।
च्यारि अण्ड ब्रह्मण्ड रचानैं, कूरंभ धौल धराये।
कच्छ मच्छ शेषा नारायण, सहंस मुखी पद गाये ।।1।।
च्यारि बेद अस्तुति करत हैं, ज्ञान अगम गौहराये।
अकथ कथा अछर निहअछर, पुस्तक लिख्या न जाये ।।2।।
सुरति निरति सें अगम अगोचर, मन बुद्धि हैरति खाये।
ज्ञान ध्यान सें अधक प्रेरा, क्या गाऊं राम राये ।।3।।
नारद मुनी गुनी महमंता, नर सैं नारि बनाये।
एक पलक में नारद मुनि, पूत बहतरि जाये ।।4।।
ध्रू प्रहलाद भक्ति के खंभा, द्वादश कोटि चिताये।
जिनकी पैज करी प्रवांना, खंभा में प्रगटाये ।।5।।
रावण शिब की भक्ति करी है, दश मस्तक धरि ध्याये।
राज पाय करि गये रिसातल, जिनि कैलास हलाये ।।6।।
शिब की भक्ति करी भसमागिर, जिन शिब शंकर ताये।
ऐसे मोहन रूप मुरारी, गंड हथ नाच नचाये ।।7।।
बलि कूं जगि असमेद पुराजी, बावन द्वारै आये।
तीनि लोक त्रिपैंड़ करी जिनि, ऐसे चरण बढाये ।।8।।
पंच भरतारी की पति राखी, सीता कलंक लगाये।
अनन्त चीर चिंत्यामनि कीन्हें, शोभा कही न जाये ।।9।।
कृष्ण चन्द्र गए द्वारिका, कबीर कृष्ण रूप बनाए।
दुरजोधन की मेवा त्यागी, साग बिदुर घरि खाये ।।10।।
संख बजा नहीं कृष्ण से वहाँ, सुपच रूप धरि धाए।
पाण्डों यज्ञ में कबीर जगत गुरू, तेतीस कोटि हराये ।।11।।
बाज्या संख सुरग में सुनिया, अनहद नाद बजाये।
तैमूर लंग की एक रोटी, रुचि रुचि भोग लगाये ।।12।।
सदनां जाति कसाई उधरे, पारासुर ध्यान डिगाये।
तपिया का तप दूरि किया है, लोदिया कै गला बंधाये ।।13।।
नरसीला की हूडी झाली, सांवल शाह कहाये।
नामदेव की छांनि छिवाइर्, दवे ल फेिर दिखाये ।14।।
पातिशाह कू परचा लीन्हा, बच्छा गऊ जिवाये ।
दामं नगीर पीर तम्हु आगै , महला अगनि लगाये ।।15।।
कबीर की गति कोई न जांनै, केशो नाम धराये ।
नौ लख बोड़ी काशी आई, आप कबीर भर लाए ।।16।।
अतीसार चले साधू के, फिरि सिकलात उठाये।
पीपा परचै साहिब भेटे, चंदोवा दिया बुझाये ।।17।।
भवन गवन सुनि में कीन्हां, धोरै दाग दगाये।
दास गरीब अगम अनुरागी, पद मिलि पदे समाये ।।18।।