श्री शिव महापुराण से सार विचार – श्री विष्णु, श्री ब्रह्मा तथा शिव की उत्पत्ति
‘‘शिव महापुराण‘‘
‘‘श्री शिव महापुराण (अनुवादक: श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार। प्रकाशक: गोबिन्द भवन कार्यालय, गीताप्रैस गोरखपुर) मोटा टाइप, अध्याय 6, रूद्रसंहिता, प्रथम खण्ड(स ष्टी) से निष्कर्ष‘‘
अपने पुत्रा श्री नारद जी के श्री शिव तथा श्री शिवा के विषय में पूछने पर श्री ब्रह्मा जी ने कहा (प ष्ठ 100 से 102) जिस परब्रह्म के विषय में ज्ञान और अज्ञान से पूर्ण युक्तियों द्वारा इस प्रकार विकल्प किये जाते हैं, जो निराकार परब्रह्म है वही साकार रूप में सदाशिव रूप धारकर मनुष्य रूप में प्रकट हुआ। सदा शिव ने अपने शरीर से एक स्त्राी को उत्पन्न किया जिसे प्रधान, प्रक ति, अम्बिका, त्रिदेवजननी (ब्रह्मा, विष्णु, शिव की माता) कहा जाता है। जिसकी आठ भुजाऐं हैं। ‘
‘श्री विष्णु की उत्पत्ति‘‘ जो वे सदाशिव हैं उन्हें परम पुरुष, ईश्वर, शिव, शम्भु और महेश्वर कहते हैं। वे अपने सारे अंगों में भस्म रमाये रहते हैं। उन काल रूपी ब्रह्म ने एक शिवलोक नामक (ब्रह्मलोक में तमोगुण प्रधान क्षेत्रा) धाम बनाया। उसे काशी कहते हैं। शिव तथा शिवा ने पति-पत्नी रूप में रहते हुए एक पुत्रा की उत्पत्ति की, जिसका नाम विष्णु रखा।
अध्याय 7, रूद्र संहिता, शिव महापुराण (प ष्ठ 103, 104)।
”श्री ब्रह्मा तथा शिव की उत्पत्ति“
अध्याय 7, 8, 9(प ष्ठ 105-110) श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि श्री शिव तथा शिवा (काल रूपी ब्रह्म तथा प्रक ति-दुर्गा-अष्टंगी) ने पति-पत्नी व्यवहार से मेरी भी उत्पति की तथा फि मुझे अचेत करके कमल पर डाल दिया। यही काल महाविष्णु रूप धारकर अपनी नाभि से एक कमल उत्पन्न कर लेता है। ब्रह्मा आगे कहता है कि फिर होश में आया। कमल की मूल को ढूंढना चाहा, परन्तु असफल रहा। फिर तप करने की आकाशवाणी हुई। तप किया। फिर मेरी तथा विष्णु की किसी बात पर लड़ाई हो गई। (विवरण इसी पुस्तक के प ष्ठ 549 पर) तब हमारे बीच में एक तेजोमय लिंग प्रकट हो गया तथा ओ3म्-ओ3म् का नाद प्रकट हुआ तथा उस लिंग पर अ-उ-म तीनों अक्षर भी लिखे थे। फिर रूद्र रूप धारण करके सदाशिव पाँच मुख वाले मानव रूप में प्रकट हुए, उनके साथ शिवा (दुर्गा) भी थी। फिर शंकर को अचानक प्रकट किया (क्योंकि यह पहले अचेत था, फिर सचेत करके तीनों को इक्कठे कर दिया) तथा कहा कि तुम तीनों स ष्टी-स्थिति तथा संहार का कार्य संभालो। रजगुण प्रधान ब्रह्मा जी, सतगुण प्रधान विष्णु जी तथा तमगुण प्रधान शिव जी हैं। इस प्रकार तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (काल रूपी ब्रह्म) गुणातीत माने गए हैं (प ष्ठ 110 पर)।
सार विचार:-
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि काल रूपी ब्रह्म अर्थात् सदाशिव तथा प्रक ति (दुर्गा) श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव के माता पिता हैं।
दुर्गा इसे प्रक ति तथा प्रधान भी कहते हैं, इसकी आठ भुजाऐं हैं।
यह सदाशिव अर्थात् ज्योति निरंजन काल के शरीर अर्थात् पेट से निकली है।
ब्रह्म अर्थात् काल तथा प्रक ति (दुर्गा) सर्व प्राणियों को भ्रमित रखते हैं।
अपने पुत्रों को भी वास्तविकता नहीं बताते। कारण है कि कहीं काल (ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्मण्ड के प्राणियों को पता लग जाए कि हमें तप्तशिला पर भून कर काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) खाता है। इसीलिए जन्म-म त्यु तथा अन्य दुःखदाई योनियों में पीडि़त करता है तथा अपने तीनों पुत्रों रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी से उत्पत्ति, स्थिति, पालन तथा संहार करवा कर अपना आहार तैयार करवाता है।
क्योंकि काल को एक लाख मानव शरीरधारी प्राणियों का आहार करने का शाप लगा है
, क पया श्रीमद् भगवत गीता जी में भी देखें ‘काल (ब्रह्म) तथा प्रक ति (दुर्गा) के पति-पत्नी कर्म से रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव की उत्पत्ति।
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