जानिये क्या देवी-देवताओं का राजा इन्द्र भी गधा बनता है ?

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देवी-देवताओं का राजा इन्द्र भी गधा बनता है ?

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एक समय मार्कण्डे ऋषि निरंकार ईश्वर मान कर ब्रह्म (काल) की कई वर्षों से साधना कर रहे थे।
इन्द्र (जो स्वर्ग का राजा है) को चिंता बनी कि कहीं यह साधकअधिक तप करके इन्द्र की पदवी प्राप्त न करले।
चूंकि इन्द्र की पदवी (पोस्ट) अधिक यज्ञ करके या अधिक तप करके प्राप्त की जाती है। उसका (इन्द्र का) शासन काल बहत्तर चैकड़ी (चतुर्युगी) युग का होता है।
उसके शासन काल के दौरान यदि कोई साधक इन्द्र की पदवी पाने योग्य साधना कर लेता है
तो उस वर्तमान इन्द्र (स्वर्ग के राजा) को बीच में ही पद से हटा कर नए साधक को इन्द्र पद दे दिया जाता है। इसलिए इन्द्र को यह चिंता बनी रहती है कि कोई तप या यज्ञ करके मेरे राज्य को न छीन ले। इसलिए वह उस साधक का तप या यज्ञ बीच में खण्ड करवादेता है।इसी उद्देश्य से इन्द्र ने मार्कण्डे ऋषि के पास
एक उर्वसी स्वर्ग से भेजी। उर्वसी ने अपनी सिद्धि शक्ति से सुहावना मौसम बनाया तथा खूब नाची-गाई। अंत में निवस्त्र हो गई। तब मार्कण्डे ऋषि ने कहा कि
हे बहन! हे बेटी! हे माई! आप यहाँ किस लिए आई? इस पर उर्वसी ने कहा कि हे मार्कण्डे गुसांई!
आप जीत गए मैं हार गई। आप एक बार इन्द्र लोक में चलो नहीं तो मेरा मजाक करेंगे
और मुझे सजा दी जाएगी।
मार्कण्डे बोले मैं जहाँ की साधना (महास्वर्ग-ब्रह्म लोक की साधना) कररहाहूँ वहाँ पर जो नाचने वाली तथा गाने वाली हैं उनके पैर धोने वाली तेरे जैसी सात-सात बान्दियाँहैं। फिर तेरे को क्या देखूं।
तेरे से अगली कोई अधिक सुन्दर हो उसे भेज दे।
इस पर उर्वसी ने कहा कि इन्द्र की पटरानी मैं ही हूँ अर्थात् मेरे से सुन्दर कोई नहीं है।
इस पर मार्कण्डे गोंसाई बोले कि जब इन्द्र मरेगा तब क्या करेगी?
उर्वसी बोली मैं चौदह इन्द्र वरूंगी अर्थात् मैं तो एक बनी रहूँगी मेरे सामने (14) चैदह इन्द्र अपनी-अपनी इन्द्र पदवी भोग कर मर जाएंगे। मेरी आयु स्वर्ग की पटरानी के रूप में है।
(72 गुणा 14 = 1008 चतुर्युग तक अर्थात्
एक ब्रह्मा के दिन(एक कल्प) की आयु एक इन्द्र की पटरानी शची की है। मार्कण्डेऋषि बोले चैदह इन्द्र भी मरेंगे तब क्या करेगी?
उर्वसी बोली जितने इन्द्र मैं भोगुंगी वे गधे बनेंगे तथा मैडं गधी बनूंगी।
गरीब दास जी कहते है –
एती उम्र, बुलंद मरेगा अंत रे।
सतगुरु लगे न कान,
न भेटैं संत रे।।
फिर इन्द्र आया तथा कहने लगा कि हे बन्द निवाज!
आप जीत गए हम हार गए। चलो इन्द्र की गद्दी प्राप्त करो। इस पर मार्कण्डे ऋषि बोले- रे-रे इन्द्र क्या कहरहा है?
इन्द्र का राज मेरे किस काम का। मैं तो ब्रह्म लोक की साधना कर रहा हूँ।
वहाँ पर तेरे जैसे इन्द्र अलिलों (नील संख्या) में हैं उन्होंने मेरे चरणछुए। तू भी अनन्य मन से (नीचे की साधना – ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा देवी-देवताओं का त्याग करने को अनन्य मन कहते हैं) ब्रह्म की साधना कर ले। ब्रह्म लोक में साधक कल्पों तक मुक्त हो जाता है।
इस पर इन्द्र नेकहा ऋषि जी, फिर कभी देखेंगे। अब तो मौज मारने दो।
यहाँ विशेष विचारने की बात है कि इन्द्र जी को मालूम है कि इस क्षणिक स्वर्ग के राज का सुख भोग कर गधा बनुंगा। फिर भी मन व इन्द्रियों के वश हुआ विकारों के आनन्द को नहीं त्यागना चाहता।
इसी प्रकार जो शराब पीता है उसे उत्तम मान कर त्यागना नहीं चाहता।
इसी प्रकार ब्रह्मा, विष्णु, शिव भी अपनी पदवी को भोग कर मर जाएंगेऔर फिर चैरासी लाख योनियों को प्राप्त होगें।
नई श्रेष्ठ (परम) आत्मा काल निरंजन के घर प्रकृति (अष्टंगी) के उदरसे जन्म लेती है तथा उन्हें फिर तीन लोक का राज्य दे देता है- ब्रह्मा को शरीर बनाना, विष्णु को स्थिति और शिव को संहार (प्रलय)।
चूंकि काल (ब्रह्म) शापवश प्रतिदिन एक लाख (मनुष्य-देव-ऋषि)शरीर धारी प्राणी खाता है। उसके लिए इसके तीनों पुत्र व्यवस्था बनाए रखते हैं।आदरणीय
गरीबदास साहेब जी कह रहे हैं कि हे नादान मन! असंख्यों जन्म हो गए इस काल लोक में कष्ट उठाते। अब जीवित मर ले।
जीवित मरना है – न पृथ्वी के राज की चाह, न स्वर्ग के राज की, न ब्रह्मा विष्णु-शिव बनने की चाह, न शराब-तम्बाखू-सुल्फा, न अफीम, न माँस प्रयोग की इच्छा तथा तीन लोक व ब्रह्म लोक की साधना को त्याग कर
उस पूर्ण परमात्मा (पूर्णब्रह्म सतपुरुष) की साधना अनन्य (अव्याभिचारिणी)भक्ति करके सतलोक (सच्चखण्ड) चला जा। फिर तेरा जन्म-मरण सदा के लिए समाप्त हो जाएगा। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण पवित्रा गीता जीके अध्याय 13 में तथा रह-रह कर प्रत्येक अध्याय में दिया है।
फिर कहा है कि कोई पूर्ण संत (सतगुरु) मिले तो सही ज्ञान (जो गीता जी के अध्याय13 पूरे में है) बता कर उत्तम साधना सतनाम तथा सारनाम दे कर पार करे।
जहाँ (सतलोक में) चार मुक्ति जो ब्रह्म साधना की अंतिम उपलब्धि है वहाँ (सतलोक के) केे स्थाई सुख के सामने तुच्छ है तथा माया (सर्व सुविधा देने वाली)
वहाँ आम भक्त (हंस) की सेवक है। अर्थात् हर सुविधा तथा सुख चरणों में पड़ा रहता है। इन्द्र का स्वर्ग राज, सतलोक की तुलना में कौवे की बीट (टटी) के समान है।
अविनाशी (परम अक्षर ब्रह्म) की प्राप्ति हो जाएगी। उस को प्राप्त करके पूर्ण मुक्त (परम गति को प्राप्त) हो जाएगा।

LORD KABIR
Banti Kumar
WRITTEN BY

Banti Kumar

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