भक्ति की सच्ची सीख “मीरा बाई” से…
भक्ति की साक्षात मूरत मीरा बाई को कौन नही जानता।
सब जानते हैं कि यह बहन बचपन/शुरू से श्री कृष्ण जी की उपासक थी। इसके अधिकतर भजनों में कृष्ण जी की ही महिमा व गुणगान है और ये श्री कृष्णजी पर इतनी समर्पित व दीवानी थी कि ये अन्य किसी भी देवी देवता को नही पूजती थी और इसने यहाॅ तक कह दिया था कि…
“मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई”
परंतु ऐसी क्या घटना घटी इसके जीवन में कि इसने ये कहने मे भी जरा सा संकोच नही किया कि…
कोई मुझे भूण्डी कहो के सूण्डी।
मेरी सूरत राम में लागी।।
और ये रो-रोकर गाया कि …
पायो जी मैने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु।
करि कृपा अपनायो।
पायो जी मैने…..।।
यह घटना उन भगतों के लिए बड़ा ही प्रेरणाप्रद है जिनकी आस्था अभी भी किसी भगवान में और उससे भी ज्यादा मुक्ति में है। क्यों कि मुक्ति का सीधा संबंध भगवान से व उसके सामर्थ्य से है।
कहा भी गया है कि…
बंधे को बंधा मिला, छूटे कौन उपाय।
कर सेवा निरबंध की,पल में ले छूड़ाय।।
घटना यूॅ है कि घरवालों ने जबरदस्ती मीरा बाई की शादी एक राजा से करा दी, जो शादी के 4 वर्ष पश्चात मर गया। राजा जब तक जिंदा रहा मीरा को भक्ति करने व बाहर मंदिर जाने से नही रोका, सहयोग किया।
किंतु मृत्युपरांत उसका छोटा भाई राजा बना और उसने मीरा पर क्या-क्या सीतम नही ढाऐ। हार की पेटी में साॅप डालकर बहन को दिया जिससे वह मर जाए, जहर भी दिया और तलवार से भी काटना चाहा, पर वह न मरी, और मंदिर आती जाती रही।
एक बार मीरा बाई मंदिर जा रही थी, उसी रास्ते में कबीर साहेब और रविदास साथ में 10-20 भगत सतसंग कर रहे थे। मीरा भी सतसंग में आकर बैठ गई।
सतसंग में बताया जा रहा था कि ब्रह्मा – विष्णु – शंकर से ऊपर भी “एक महाप्रबल शक्ति” है, केवल उसी की भक्ति करने से ही हम “मुक्ति” को प्राप्त कर सकते हैं बाकी कोई भी देव हमें मोक्ष नही दिला सकता।
इतना सुनते ही मीरा से रहा नही गया और हाथ जोंड़कर कबीर साहेब से पूछने लगी कि- “ये आप क्या कह रहे हो महात्मा जी? क्या भगवान श्रीकृष्ण से ऊपर भी कोई परमशक्ति है ???”
कबीर साहेब ने जवाब दिया – हाँ बेटी श्रीकृष्ण से ऊपर भी और महान शक्तियाॅ हैं, मैं उन्ही का ज्ञान व भक्ति विधि बताता हूॅ।
मीरा कहने लगी मुझे आपकी बातों पर विश्वास नही होता संतजी। “मुझे तो श्रीकृष्ण जी प्रकट होकर दर्शन देते व बात करते हैं।”
तब कबीर साहेब ने कहा- मैं जो कह रहा हूॅ वह सत्य है मीरा। अगर तुझे इस ज्ञान पर विश्वास नही होता तो अपने कृष्ण से ही पूछ ले क्यों कि ये देवता झूठ नही बोला करते।
मीरा बहूत व्याकूल हो उठी और घर आकर बड़े तड़प के साथ श्रीकृष्ण जी को पुकारने लगी।
श्री कृष्ण जी ने दर्शन दिए, तब मीरा बड़ी आतुरता से पूछा कि- क्या आपसे ऊपर भी कोई और शक्ति है ???
कृष्ण जी ने कहा कि- हाँ मीरा है तो सही, पर आज तक हमें वो मिला नही, इसलिए उसका प्रयत्न बेकार है।
मीरा ने कहा- मुझे एक ऐसा संत मिला है जो मुझे वहाॅ तक की साधना बताकर “मोक्ष” दिला सकता है।
यह कहकर मीरा बाई बड़ी बेचैनी और तड़प के साथ सतगुरू के शरण में आयी और कबीर साहेब के आदेशानुसार रविदास जी से वह मोक्ष-मार्ग के “प्रथममंत्र” को प्राप्त की।
मीराबाई के मोक्ष की प्रथम सीढ़ी यही से प्रारंभ हूई, आगे सीढ़ीयाॅ और भी हैं, जिसे सतगुरू रूप में कबीर साहेब ने बीच बीच में दर्शन देकर (प्रकट होकर) पूर्ण की और उस बहन को मुक्ति प्रदान किया।
कथा सारांश:-
मीरा बाई की सतगुरु मिलने से पहले की भक्ति पूर्ण नही थी, फिर भी उसकी उपलब्धि देखिए कि जहर पीकर भी न मरी और उसके इष्टदेव उसे साक्षात दर्शन देते थे। लेकिन सतगुरू शरण में आने से उस भोली आत्मा को पता चला कि ये तीनो देव, ब्रम्ह व परब्रम्ह की भी भक्ति करने से “मोक्ष” प्राप्ति नही हो सकती।
क्यों कि जब तक की उस पारब्रम्ह परमेश्वर की सही “शास्त्रानुकूल साधना पूर्ण संत” से नही मिलती तब तक हमें मुक्ति नही मिल सकती। सांसारिक उपलब्धि या मीरा बाई की तरह ऐसे चमत्कार कितने भी क्यों न हो।
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इसलिए आप समस्त भगत समाज से प्रार्थना है कि अपने भक्ति की किसी उपलब्धि या चमत्कार से गुमराह न हों। बहन मीरा की तरह इस सतज्ञान को समझकर सर्व हितकारक फैसला लेकर अपना कल्याण करें व इस तत्वज्ञान को सप्रमाण समझने के लिए अवश्य देखिए मंगल प्रवचन !!
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