ऐसा राम कबीर ने जाना। धर्मदास सुनियो दै काना।।
ऐसा राम कबीर ने जाना। धर्मदास सुनियो दै काना।। ऐसा राम कबीर ने जाना। धर्मदास सुनियो दै काना।।सुन्न के परे पुरुष को धामा। तहँ साहब है आदि अनामा।।ताहि धाम सब जीवका दाता। मैं सबसों कहता निज बाता।।रहत अगोचर (अव्यक्त)सब के पारा। आदि अनादि पुरुष है न्यारा।।आदि ब्रह्म इक पुरुष अकेला। ताके संग नहीं कोई चेला।।ताहि न जाने यह संसारा। बिना…